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जोधपुर

एक कीड़े के कारण राजस्थान के इस शहर का नीला हो गया था रंग, देश ही नहीं विदेश में भी बन गई पहचान

Blue City of Rajasthan : हमारा शहर जोधपुर अपने आप में समृद्ध विरासत, प्राचीन इतिहास के साथ अलग पहचान रखता है। सूर्यनगरी के साथ ही इसे देश-विदेश में ब्ल्यू सिटी के नाम से पहचाना जाता है। ब्ल्यू सिटी को देखने कई देसी-विदेशी सैलानी यहां आते हैं।

जोधपुरMar 06, 2024 / 01:39 pm

Rakesh Mishra

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Blue City of Rajasthan : हमारा शहर जोधपुर अपने आप में समृद्ध विरासत, प्राचीन इतिहास के साथ अलग पहचान रखता है। सूर्यनगरी के साथ ही इसे देश-विदेश में ब्ल्यू सिटी के नाम से पहचाना जाता है। ब्ल्यू सिटी को देखने कई देसी-विदेशी सैलानी यहां आते हैं। इतिहासकार जहूर खां मेहर ने पत्रिका से विशेष बातचीत में बताया कि अपनी शुरुआती बसाहट में यह ऐसा नहीं था। तब सीमेंट नहीं था। चुनाई में मुड या मिट्टी लगती थी। पर एक विशेष प्रकार का कीड़ा मुड खाता था और मकान कमजोर होकर गिर जाते थे। कीड़े से बचाने के लिए चूने में नीले रंग की मिलावट कर यह पुताई होने लगी। यह गर्मी से भी बचाता। इस तरह ब्ल्यू सिटी के रूप में पहचान बनती गई।
Q. हमारा जल संचय सिस्टम कैसा था, कई ऐतिहासिक विरासत में यह झलक दिखती है?
A. तूअरजी का झालरा, गुलाब सागर, सैकड़ों बावड़ियां व कुएं और इसके अलावा हमारा नहरी सिस्टम पूरी प्लानिंग के साथ बनाया गया था। पहाड़ियों से पानी कैसे नीचे उतरेगा और किस प्रकार से जलाशयों व बावड़ियों तक जाएगा इसका प्लान था, कई जलाशय आपस में जुड़े हुए हैं।
Q. शहर को नीले रंग से पोतने की शुरुआत कैसे हुई और इसका क्या कारण था?
A. जब शहर की बसावट हुई तो सीमेंट चलन में नहीं था, गारे से चुनाई करते थे। भोगीशैल के पत्थर ज्यादा थे, तो चुनाई के लिए मुड या मिट्टी का उपयोग किया जाता। पहाड़ियों में एक विशेष प्रकार का कीड़ा था जो मुड खाता था और इससे मकान कमजोर होने लगते थे और कुछ सालों में ही गिर जाते थे। इसलिए इस कीड़े से बचाने के लिए चूने में नीले रंग की मिलावट कर यह पुताई होने लगी। जिससे मान्यता थी कि वह कीड़ा नहीं लगेगा और मकान सुरक्षित रहेगा। घरों की छत पर भी चूना लगाया जाता था, जिससे कि गर्मी कम रहे।
Q. हमारे शहर की बसावट कैसे हुई, सांस्कृतिक विरासत क्या है?
A. मेहरानगढ़ किले के आस-पास सबसे ज्यादा ब्राह्मण आबादी मिलेगी। इसका कारण था कि रियासतकाल में जब भी राज परिवार को किसी भी अनुष्ठान की जरूरत होती तो ब्राह्मण ही सबसे पहले बुलाए जाते थे। इसके बाद दूसरी लेयर में महाजन और सुनार जाति की बसावट है, क्योंकि यह सम्पन्न लोग थे तो इनकी सुरक्षा की भी जिम्मेदारी रखी गई। शहर के परकोटे व दरवाजे के पास में लड़ाकू या बाहुबली जातियों की बसावट थी, जिससे कि बाहरी आक्रमण को रोक सकें। यही सांस्कृतिक विरासत थी।
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Q. जोधपुर में छीतर के पत्थर का चलन आया तो ब्ल्यू सिटी की थीम कैसे पीछे छूट गई, इसके क्या कारण है?
A. छीतर के पत्थर का चलन तो जोधपुर में सन 1929 से शुरू हुआ। जब छीतर पैलेस का निर्माण शुरू हुआ, तब से पत्थरों की घड़ाई और अन्य चीजें प्रचलन में आईं। जोधपुर में धीरे-धीरे यह समृद्धता का प्रतीक बन रही है। फिर तो इसका खनन भी होने लगा।

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