बकौल, पुलिस अधीक्षक (एसीबी) लाम्बा साढ़े चार साल पहले आसाराम के प्रभुत्व व वर्चस्व के सामने पीडि़ता और उसके माता-पिता बहुत कमजोर थे, लेकिन सच्चाई के लिए अडिग रहे। कानून की पालना करने वालों ने भी निष्पक्ष व निर्भीक होकर कार्य किया। ढाई साल से एसीबी में एसपी होने के बावजूद वे प्रतिदिन मामले की मॉनिटरिंग करते रहे। कोर्ट में सुनवाई से पहले हर पहलू बात करते और योजना बनाते थे। शिवा व प्रकाश के बरी होने की पहले से आशंका थी। इनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे।
लाम्बा ने कहा, आसाराम के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने से लेकर इंदौर के आश्रम से गिरफ्तारी, उसे जोधपुर लाने व जेल भेजे जाने तक कानून व्यवस्था को आंच तक नहीं आई। कड़े बंदोबस्त के चलते सजा वाले दिन भी पूरी तरह शांति रही। जो अन्य राज्यों के लिए मिसाल होनी चाहिए।
आसाराम का ताउम्र जेल की सजा समाज के लिए संदेश है। अंधी भावनाओं के प्रति आस्था पर अंकुश लगेगा। पुलिस के प्रति आमजन में विश्वास और बढ़ेगा।
– आरोप साबित करने के लिए सिर्फ पीडि़ता के बयान ही थे। – एफआईआर दर्ज की गई तब आसाराम का वर्चस्व था। गिरफ्तारी चुनौतीपूर्ण थी। इंदौर के आश्रम से शांतिपूर्ण तरीके से पकड़कर लाना महत्वपूर्ण रहा।
– कोर्ट में सुनवाई के दौरान पुलिस के प्रयास सेगवाहों को अपने बयान पर कायम रखा गया था। आरोपी पक्ष गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास कर रहा था। – आसाराम के सामने पीडि़त पक्ष कमजोर था। उसने धुरंधर से धुरंधर वकील खड़े किए, जो सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करते हैं।
– एफआईआर के बाद जांच से जुड़े अधिकारियों व जवानों को धमकियां मिलती रही। प्रलोभन भी दिए गए थे। तत्कालीन डीसीपी लाम्बा को भी अज्ञात पोस्टकार्ड से धमकियां दी गई।