विक्रम संवत 1857 में बना था छोटा सा मंदिर सदियों पहले प्राकृतिक चट्टान में करीब आठ फीट ऊंची और पांच फीट चौड़ी गणेश मूर्ति का प्राकट्य हुआ। बाद में विक्रम संवत 1857 में पहाड़ी पर एक छोटा मंदिर बनाया गया। वर्तमान में देवस्थान विभाग के राजकीय प्रत्यक्ष प्रभार वाले गणेश मंदिर में शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का वंशानुगत परिवार ही पांच पीढिय़ों से पूजा अर्चना करता है। मंदिर के पुजारी प्रदीप शर्मा ने बताया कि वाहनों में तीर्थ स्थलों की हर धार्मिक यात्रा के सफर की शुरुआत और समापन रातानाडा गणेश मंदिर दर्शन से ही करने की परम्परा है। जोधपुर में प्रत्येक तीसरे साल पुरुषोत्तम मास के दौरान भोगिशैल परिक्रमा का शुभारंभ व समापन भी रातानाडा गणेश के दर्शन से ही होता है।
हर मांगलिक कार्य का प्रथम निमंत्रण रातानाडा गणेशजी को जोधपुर शहरवासी घर में प्रत्येक मांगलिक कार्य का प्रथम निमंत्रण प्रथम पूज्य रातानाडा गणेशजी को देने पहुंचते है। शुभ दिन व मुहूर्त में मंदिर में विधिवत मिट्टी के मांडणेयुक्त एक पात्र में गणेशजी को प्रतीकात्मक मूर्ति के रूप में स्थापित कर गाजे-बाजों के साथ घर पर लाया जाता है और मांगलिक कार्य पूर्ण होने के बाद पुन: आभार सहित मंदिर पहुंचाया जाता है।