खंडपीठ ने पत्रिका की खबरों में उजागर किए गए तथ्यों के आधार पर चिंता जताई और कहा-‘आशंका है कि यह परियोजना बड़े पैमाने पर वन क्षेत्र और पूर्ण विकसित पेड़ों को प्रभावित करेगी, जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ सकता है और वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा हो सकता है।’
अधिवक्ता संदीप शाह न्याय मित्र नियुक्त
मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप शाह को न्याय मित्र नियुक्त किया है, जबकि अधिवक्ता लक्ष्य सिंह उदावत और मेहली मेहता को उनकी सहायता के लिए नियुक्त किया गया है। इसके साथ ही खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे मामले पर विस्तृत जवाब दाखिल करें, जिसमें यह सुझाव दिया जाए कि 1.19 लाख पेड़ों को कैसे बचाया जा सकता है और क्या कोई वैकल्पिक भूमि उपलब्ध है, जहां यह परियोजना शुरू की जा सकती है और क्या उसी क्षेत्र में पुनर्वनीकरण किया जा सकता है, ताकि कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में किसी भी प्रकार के असंतुलन से बचा जा सके। तात्कालिक खतरा नहीं
सुनवाई के दौरान डिप्टी सॉलिसिटर जनरल तथा अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि फिलहाल कम से कम अगले पंद्रह दिनों तक पेड़ों की कटाई का कोई तात्कालिक खतरा नहीं है, क्योंकि परियोजना के लिए राज्य से चरण एक की मंजूरी अभी प्राप्त नहीं हुई है। कोर्ट ने इस मामले को अगले 10 दिनों के भीतर जनहित याचिका के रूप में सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हुए आश्वासन को रिकॉर्ड पर लिया है।
स्वच्छ पर्यावरण जीवन का अधिकार
खंडपीठ ने संज्ञान लेते हुए कहा कि हरित और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू माना जाता है, जो राज्य और उसके प्राधिकारियों यह जिम्मेदारी डालता है कि न केवल पर्यावरण को किसी भी संभावित खतरे से बचाया जाए। इसे संरक्षित, सुरक्षित और पुनर्जीवित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने के लिए प्रयास किए जाएं, ताकि नागरिकों के लिए एक सच्चा सार्थक जीवन सुनिश्चित हो सके।