जफ़ऱ खान सिन्धी – स्कूली दोस्तों ने चढ़ाया कि मुम्बई चले जाओ तुम्हारी आवाज़ में दम है। बस इसी ख़ुशफहमी में यहाँ तक का सफ़ र तय कर लिया। अब घिसते घिसते तो पत्थर भी गोल हो जाते हैं।
जफ़ऱ खान सिन्धी – हां, लाइव प्रोग्राम में रिस्क रहती है ख़ासकर फ़ ोन इन प्रोग्राम पेजेंट करते वक़्त तो यह होता है, वरना लाइव में सुनने वालों का जो रिस्पॉन्स मिलता है, स्टूडियो एन्ड में वह मज़ा कहाँ..
जफ़ऱ खान सिन्धी – वोह शुरुआती दौर का शौक़ था, जि़न्दगी की ज़रूरियात ने शौक़ को एन्करिंग में तब्दील करवा दिया। मुझे लगा कि शाइरी से दिल की प्यास तो बुझ जाती, पर जि़म्मेदारियों के एहसास और अलग मक़ाम हासिल करने के जुनून ने रुख़ बदल दिया।
पत्रिका- चेहरा फोटोजेनिक और भी अच्छी है, फिर रेडियो को ही ज्यादा तवज्जो क्यों?
जफ़ऱ खान सिन्धी- मैंने रेडियो ज्वाइन करने से पहले ज़ी टीवी के एक साप्ताहिक कार्यक्रम घूमता आईना के 13 एपिसोड में एन्करिंग की थी, इस दरम्यान सर से वालिद का साया उठ गया तो वापस लौटना पड़ा। सच तो यह है कि एक्टिंग आती नहीं, जो भीतर है, वही बाहर सच है।
जफ़ऱ खान सिन्धी –अस्ल में राजस्थानी मेरी मातृ भाषा है, माँ की गोद में बैठ कर इस ज़बान का रसास्वादन तब से कर रहा हूँ, जब शब्दों से यारी हुई भी नहीं थी। आकाशवाणी के सनसिटी चैनल पर भी राजस्थानी प्रोग्राम खूब लोकप्रिय हुए। मंचीय कार्यक्रमों में भी राजस्थानी की मरोड़ और ज़ायकेदार लहजा ज़्यादा पसंद किया गया। रेडियो से बाहर सार्वजनिक कार्यक्रमों में युवा लड़के- लड़कियां जब ये कहतीं हैं के पहले राजस्थानी बोलने में हिचक होती थी, आपकी राजस्थानी में एन्करिंग सुन कर लगता है कि हाँ राजस्थानी में भी इतनी लोक लचक और अमीरी झलकती है, तब अपनी ज़बान पर गर्व होता है।
जफ़ऱ खान सिन्धी – आज के एन्कर्स ज़माने के साथ साथ अपनी स्पीड भी उसी गति से बढ़ा रहे हैं, जो इस परंपरागत शहर को उतना नहीं लुभाता, जितना ठीमरव ठीक तऱीके से कही जाने वाली बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है। नये एन्कर्स को चेहरे के मेकअप के बजाय शब्दों का शृंगार ज़्यादा ख़ूबसूरती दे सकता है। नक़ल और बनावटीपन में परायेपन का एहसास होता है, अपनापन तो हरगिज़ नहीं।पत्रिका- जोधपुर शहर में क्या अच्छा लगता है?सिन्धी- शहर में कोई एक- दो चीज़ अच्छी लगती हो तो बताऊँ ना। मेरे अपणायत से लबरेज़ शहर की हर चीज़ अच्छी लगती है। इस शहर की धूप, इस शहर की छाया, मीठी ज़बान, ज़ायकेदार मेहमान नवाज़ी सब कुछ अच्छा लगता है। कांई कांई करां म्हे बखाण।