scriptKargil Vijay Diwas: पत्नी के हाथों से मेंहदी का रंग फीका भी नहीं हुआ था की शहीद पति का तिरंगे में लिपटा गांव पहुंचा शव | Kargil Vijay Diwas: The colour of the mehendi on the wife's hands had not even faded when the body of the martyred husband reached the village wrapped in the tricolour | Patrika News
जोधपुर

Kargil Vijay Diwas: पत्नी के हाथों से मेंहदी का रंग फीका भी नहीं हुआ था की शहीद पति का तिरंगे में लिपटा गांव पहुंचा शव

शादी के एक पखवाड़े बाद ही जोधपुर बालेसर क्षेत्र के बालेसर दुर्गावता गांव निवासी भंवर सिंह इंदा की छुट्टियां निरस्त होने के बाद देश की रक्षा के लिए सीमा पर जाना पड़ा।

जोधपुरJul 26, 2024 / 12:08 pm

Akshita Deora

Kargil Vijay Diwas Story: नई दुल्हन के हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी थी और शादी के महज 15 दिन बाद वह वीरांगना कहलाई। शहीद पति भंवर सिंह इंदा की शाहदत को 25 साल हो गए लेकिन जेहन में अभी यादों की पोटली ताजा है।
शादी के एक पखवाड़े बाद ही जोधपुर बालेसर क्षेत्र के बालेसर दुर्गावता गांव निवासी भंवर सिंह इंदा की छुट्टियां निरस्त होने के बाद देश की रक्षा के लिए सीमा पर जाना पड़ा। वहां करगिल युद्ध में मुस्तैद रहे और 28 जून 1999 को दुश्मनों से लोहा लेते हुए 23 साल की उम्र में शहीद हो गए। उस समय पूरा प्रशासनिक लवाजमा उमड़ा। जनप्रतिनिधि भी धोक देने पहुंचे लेकिन समय की बढ़ती रफ्तार के साथ ही यह सब कुछ पीछे छूटता गया। लेकिन वीरांगना और शहीद के परिजन आज भी भारत माता के उस सपूत को याद कर गौरवान्वित महसूस करते हैं।
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माता-पिता के छलक पड़े आंसू

शहीद के बुजुर्ग माता-पिता आज भी अपने बेटे को याद करते हैं। लाडले के बारें में बात करते ही उनकी आंखों में आंसू छलक पड़ते हैं। साथ ही गर्व महसूस करते हैं कि उनका सपूत देश की सीमा पर शहीद हुआ है।

छुट्टियां निरस्त होते ही संभाला युद्ध का मोर्चा

उस इलाके के कई लोग सेना में है। शहीद भंवर सिंह के 6 भाई और एक बहन है हालांकि भंवर सिंह के परिवार से कोई सेना में नहीं था लेकिन मन में देशभक्ति की भावना हिलोरें लेती रहती थी। जब भी कहीं सेना भर्ती रैली की सूचना मिलती, भंवर सिंह वहां पहुंच जाते। आखिरकर एक सेना भर्ती में उनका चयन हो गया। उन्हें 27 राजपूत राइफल्स में भर्ती किया गया। बेटा सेना में नौकरी लग गया तो परिजनों ने शादी की बात चलाई। रिश्ता पक्का कर भंवर सिंह को गांव बुलाया। वे 1 महीने की छुट्टियों पर आए थे लेकिन शादी को पन्द्रह दिन ही बीते थे कि करगिल युद्ध की सूचना मिली और छुट्टियां निरस्त होते ही लौटना पड़ा। जिसके बाद उनकी पार्थिव देह तिरंगे में लिपटकर गांव पहुंची।
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बिछुडऩे का गम आज भी :पत्नी

शहीद की पत्नी बकौल इन्द्र कंवर बताती है कि ‘उस समय 15 दिनों के साथ के बाद बिछुडऩे का गम तो आज भी है, लेकिन जब लोग कहते हैं कि देखो यह शहीद की पत्नी है, वीरांगना है तो एक अलग ही सम्मान महसूस होता है। 15 दिन साथ रहने के दौरान फौजियों के साहस के किस्से सुने तो गर्व हुआ कि पति फौज में है। अब तो फक्र होता है जब कोई शहीद की शहादत को नमन करता है।’

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