तीन करोड़ की लागत से जीर्णोद्धार
राज्य सरकार के निर्देशों की पालना में पुरातत्व विभाग की ओर से फलोदी के ऐतिहासिक दुर्ग की कायाकल्प कर इसे पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने व ऐतिहासिक दुर्ग को संरक्षित करने के लिए करीब तीन करोड़ की लागत से दुर्ग के पुर्न निर्माण की योजना बनाई थी और करीब डेढ़ साल से पुर्न निर्माण का कार्य भी चल रहा है, लेकिन कार्य की गति धीमी होने से दुर्ग के जीर्णोद्धार के कार्य में देरी हो रही है।
जानकारी के अनुसार फलोदी के ऐतिहासिक दुर्ग के पश्चिम छोर के बुर्ज की दीवार गत 14 फरवरी को ढही थी, जिसके ढाई माह से अधिक का समय व्यतीत हो गया है, लेकिन पश्चिम छोर की दीवार का अभी तक पुर्न निर्माण शुरु नहीं हो पाया है।
फलोदी में दुर्ग निर्माण का इतिहास करीब 564 साल पुराना है। इतिहास विदें के अनुसार दसवीं-ग्यारहवीं सदी में यहां विजयनगर उर्फ विजयपाटन नगर हुआ करता था, जो कालान्तर में नष्ट होने के बाद सन् 1515 में सिद्धूजी कल्ला फलोदी आए और उन्होंने यहां नगर बसाया जो फलवृद्धिका और फिर फलोदी नाम से विख्यात हो गया।
दुर्ग के पश्चिम छोर की दीवार के पुर्ननिर्माण के लिए एमएनआईटी के विशेषज्ञों को पत्र लिखकर राय मांगी गइै है। उनकी ओर से अभी कोई जवाब नहीं आया है। दीवार के निर्माण में पूरी ऐहतियात बरतने के लिए विशेषज्ञों की सलाह का इंतजार किया जा रहा है। जैसे ही वहां से विशेषज्ञों की सलाह या टीम का मार्ग दर्शन मिलेगा दीवार के बुर्ज के पुर्ननिर्माण का काम शुरु कर दिया जाएगा।