शरद पूर्णिमा को चल विग्रह को मंदिर चौक में विराजित कर संकीर्तन होता है। भादवे की तीज और राधाष्टमी पर्व की छठा निराली होती है। होली, दीपावली पर मंदिर में विशेष मनोरथ आयोजित किए जाते हैं। मंदिर में प्रतिदिन मंगला, शृंगार, राजभोग, उत्थापन, संध्या, झांकी और शयन सहित छह बार आरती होती है। मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर नाथद्वारा चित्रशैली के अनूठे कलात्मक भित्ति बने हैं।
प्राकृतिक रंगों से बने चित्रों में देवकी-वासुदेव विवाह, कृष्ण रास प्रसंग, गीता उपदेश, कृष्ण-सुदामा सखा भाव, गजेन्द्र मोक्ष आदि भागवत प्रसंग बखूबी दीवारों पर उकेरे हुए हैं। सभी चित्र राम व कृष्ण दोनों की लीलाओं की झांकी का दिग्दर्शन कराती हैं। मंदिर के महंत भंवरदास निंरजनी ने बताया कि मंदिर में मुख्य स्वरूप श्रीनाथजी का है। कहा जाता है कि कुंज बिहारी की प्रतिमा कबूतरों का चौक स्थित सीताराम मंदिर से लाकर स्थापित की गई थी।
मंदिर का विशाल शिखर एवं तोरणद्वार स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। तोरणद्वार की विशेषता है कि एक ही शिलाखंड को तराश कर बनाया गया है। मंदिर में महालक्ष्मी, गायत्री, गणपति, सरस्वती, संतोषी माता, राम, निंबकाचार्य, अजनेश्वर, रामानुजाचार्या व गुरु रामानंद एवं निरंजनी सम्प्रदाय के प्रवर्तक हरि पुरुष दयाल की प्रतिमाएं भी है।