जयकुमार भाटी राजस्थान के दो प्रमुख डंपिंग स्थलों पर एशिया में सबसे अधिक शिकारी पक्षियों ने अपना घर बनाया है। इनमें जोधपुर का केरू डंपिंग यार्ड और बीकानेर का जोड़बीड़ कंजर्वेशन रिजर्व सेंटर शामिल है। इसका प्रमुख कारण केंद्र सरकार की ओर से शिकारी पक्षियों की रक्षा के लिए निमेसुलाइड दवा पर प्रतिबंध लगाना भी है।
राजस्थान में बाड़मेर, जैसलमेर, कोटा, धौलपुर, झालावाड़ सहित कई स्थानों पर शिकारी पक्षियों की आबादी पाई जाती है। आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) सदस्य डॉ. दाऊलाल बोहरा ने बताया कि प्रमुख शिकारी पक्षियों की प्रजातियों की शीतकालीन प्रवास जनगणना के अनुसार केरू में 9,456 और जोड़बीड़ में 6,640 पक्षी हैं। मध्य एशिया से पलायन करने वाले अधिकांश शिकारी पक्षी यहां पहुंचते हैं। यहां उन्हें भरपूर खाना मिलता है।
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दवा का शिकारी पक्षियों पर घातक असर
डॉ. बोहरा ने बताया कि केंद्र ने निमेसुलाइड के सभी फॉर्मूलेशन के उत्पादन, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया है। निमेसुलाइड दवा का इस्तेमाल आमतौर पर पशुओं के लिए दर्द निवारक के रूप में होता है। इन मृत पशुओं को यार्ड में फेंकने पर गिद्ध सहित शिकारी पक्षी उन्हें खाते हैं। इसका उन पर घातक असर पड़ता है। शोध में निमेसुलाइड दवा के गिद्धों पर हानिकारक प्रभावों की पुष्टि हुई है।