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झुंझुनू

यह है झुंझुनूं की सुमन, जिसने बच्चों का दर्द समझकर खोल दी पाठशाला

इस पाठशाला में करीब तीस बच्चे नियमित पढ़ाई कर रहे हैं। पढाने के बदले सुमन चौधरी कोई शुल्क नहीं लेती, बल्कि हर दिन अपनी जेब से रुपए खर्च कर रही है।

झुंझुनूNov 03, 2019 / 12:28 pm

Rajesh

यह है झुंझुनूं की सुमन, जिसने बच्चों का दर्द समझकर खोल दी पाठशाला

यह है झुंझुनूं की सुमन, जिसने बच्चों का दर्द समझकर खोल दी पाठशाला


राजेश शर्मा.
झुंझुनूं. एक दिन झुग्गी झौंपड़ी में अपने बेटे का जन्मदिन मनाने गई महिला को छोटे बच्चों का दर्द देखा नहीं गया और उसने उनको पढ़ाने की ठान ली। कुछ समय बाद पुलिस लाइन के सामने रेलवे फाटक के पास निशुल्क पाठशाला खोल दी। अब इस पाठशाला में करीब तीस बच्चे नियमित पढ़ाई कर रहे हैं। पढाने के बदले सुमन चौधरी कोई शुल्क नहीं लेती, बल्कि हर दिन अपनी जेब से रुपए खर्च कर रही है। इस पाठशाला का नाम ‘मां की ममता पाठशालाÓ रखा है। पाठशाला का समय शाम को साढ़े तीन से साढ़े पांच बजे का है। रविवार व अन्य अवकाश पर छुट्टी रहती है।

शुरुआत 10 बच्चों से
बीएड कर चुकी सुमन चौधरी ने बताया कि शुरुआत में बड़ी मुश्किल से दस बच्चे आए। उनको रोज टॉफी, ड्रेस व अन्य लालच दिया। अब बच्चों की संख्या बढ़कर करीब तीस हो गई है। पाठशाला की शुुरुआत इसी वर्ष 16 अगस्त से हुई है। इस पाठशाला में अब लोग सहायता भी देने लगे हैं। कुछ लोग अपने बच्चों का जन्मदिन भी मनाने लगे हैं। कोई कपड़े दे रहा है तो कोई पुस्तक देकर जा रहा है। किसी ने दरी पट्टी तो किसी ने श्याम पट्ट दिया है।
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पीहर व पति का पूरा सहयोग
सुमन का ससुराल झुंझुनूं के माननगर में है, जबकि पीहर भड़ौंदा खुर्द में है। सुमन ने बताया कि सेना से रिटायर्ड उसके पिता प्रभु सिंह पूनिया व चारों भाई उसकी आर्थिक मदद करते हैं। इस कार्य के लिए निजी कम्पनी में कार्यरत पति दिलीप सिंह पूरा सहयोग करते हैं। सुमन की बेटी आंध्रप्रदेश के सरकारी कॉलेज से एमबीबीएस कर रही है, जबकि बेटा बारहवीं में पढ़ रहा है।
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पशुओं का भी करती उपचार
सुमन बीमार आवारा पशुओं का भी प्राथमिक उपचार निशुल्क करती है। दवा के पैसे भी खुद की जेब से देती है। कई बार लोग सहायता भी कर देते हैं। सुमन ने बताया कि पशु चिकित्सक डॉ अनिल खींचड़ ने पशुओं के उपचार के लिए प्रेरित किया। उसके बाद उसने प्रशिक्षण लिया, अब खुद प्राथमिक उपचार कर रही है। जब वह 11 वीं कक्षा में पढ़ती थी, तब उसकी शादी हो गई थी। उसके बाद उसने पढाई नहीं छोड़ी। बारहवीं व बीए स्वयंपाठी के रूप में उत्तीर्ण की। उसके बाद बीएड की डिग्री ली।
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छोटे भाई-बहनों को संभालते थे
मां की ममता पाठशाला में पढऩे आने से पहले अधिकतर बच्चे अपने मजदूर माता-पिता के साथ मजदूरी स्थल पर चले जाते थे, वहां अपनों से छोटे भाई-बहनों को संभालते थे या दिनभर खेलते रहते थे। यहां पढऩे वाले 90 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन बहुत कम समय में अब गिनती, स्वर, व्यंजन व एबीसीडी सीख चुके। सात बच्चे ऐसे हैं जो दिन में सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और शाम को ममता की पाठशाल में चले आते हैं।
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गंदगी देख चली गई खास सहेलियां
सुमन ने बताया कि शुरुआत में उसकी दो सहेलियां भी बच्चों को पढ़ाने के लिए आई। वे दो दिन रुकी लेकिन वहां चारों तरफ गंदगी देखकर अब नहीं आती। पिछले एक माह से बड़ागांव निवासी युवक लोकेश भी बच्चों को पढ़ाने नियमित आ रहा है। सुमन ने बताया कि जरूरतमंदों को पढ़ाने और बेसहारा पशुओं का इलाज करने से उसे सुकून मिलता है।

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