ये हो रहा है नुकसान
-जिले में रोजगार का ग्राफ गिरा। पहले रोजाना तीस से चालीस हजार युवा करते थे सेना में जाने की तैयारी। अब इसका दस फीसदी भी नहीं। -दूसरे जिलों में भर्ती होने से युवाओं को ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती है। जब तक भर्ती चलती है, वहीं पर युवाओं को रहना पड़ता है। इससे उन्हें समय के साथ-साथ आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है। -यहां पर खुले सेना के भर्ती दफ्तर में कोई काम नहीं हो रहा और ना ही उसका डवलपमेंट हो रहा। -पहले सेना में जाने वाले युवाओं को तैयारी कराने वाले युवाओं के लिए सैकड़ों कोचिंग खुले थे। लेकिन अब जिलेभर में एक दर्जन भी नहीं बचे हैं।
-सेना में जाने के जुनून की वजह से रोजाना दौड़, व्यायाम व अन्य शारीरिक गतिविधि करने से युवा फिट रहते थे। -तीनों सेनाओं में चार साल का कार्यकाल कर देने की वजह से युवाओं का ध्यान दूसरी नौकरियों की तरफ होने लगा।
-कोविड के दौरान चारों जिलों के सवा लाख से अधिक युवा हो गए थे ओवरएज।
संसद में उठा था सेना भर्ती रैली का मुद्दा
झुंझुनूं में सेना भर्ती रैली नहीं होने का मुद्दा संसद में भी उठ चुका है। पूर्व सांसद नरेंद्र खींचड़ ने संसद में शून्यकाल के दौरान यह मामला उठाया था। उन्होंने यह मुद्दा 7 फरवरी 2022 को उठाया था। कई युवा संगठनों और पूर्व सैनिकों ने भी झुंझुनूं जिले में सेना भर्ती रैली करने का मुद्दा उठाया था। लेकिन समाधान कुछ नहीं निकला।
जिले में हुई सेना भर्ती रैली में दौड़े युवा
2013- 30,500 2014- 30,000 2015- 35,000 2018- 34,000 2019- 40,000 पहले हर साल होते थे 300 से 500 युवा भर्ती
सैन्य बहुल जिले में सेना भर्ती रैली नहीं होने से युवाओं में निराशा है। जानकारों के अनुसार पहले झुंझुनूं में हर साल तीन सौ से पांच सौ युवा और सीकर में हर साल 300 से ज्यादा युवा सेना में भर्ती हो रहे थे। भर्ती नहीं होने और कोविड का दौर आ जाने की वजह से सीकर में करीब 60 हजार और झुंझुनूं में 50 हजार युवा तो ओवरएज हो चुके हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जिले में 5 साल से सेना भर्ती रैली नहीं हुई। इस कारण युवाओं में निराशा है। यहां भर्ती नहीं होने से आसपास के सीकर, चूरू, नीमकाथाना आदि जिलों के युवाओं को भी भर्ती का मौका नहीं मिल पाया। झुंझुनूं जिले ने इतने शहीद और सैनिक दिए हैं। यहां पर भर्ती नहीं होने से युवाओं का मनोबल टूटा है। यह देश के लिए नुकसानदायक है। यहां भर्ती नहीं होने से यहां के बीआरओ आफिस में कोई काम नहीं हो रहा। ना उसका डेवलपमेंट हुआ। जिले में रोजगार का ग्राफ गिर गया। अच्छी-अच्छी कोचिंग जिसमें सेना की तैयारी होती थी। ज्यादातर कोचिंग बंद हो चुकी हैं।
राजपाल फोगाट, पूर्व सैनिक व प्रांतीय अध्यक्ष गौरव सेनानी शिक्षक संघ
सेना भर्ती रैली नहीं होने से सेना में युवाओं का जाने के प्रति जुनून कम हुआ है। दूसरे जिलों में यहां के युवाओं को भर्ती के लिए बुलाया जाता है। इससे उन्हें कई किलोमीटर का सफर तय कर जाना पड़ता है। इसके बाद जब तक भर्ती चलती है, वहीं पर रहना पड़ता है। एक तो चार साल का कार्यकाल कर दिया गया और दूसरा समय के साथ-साथ आर्थिक नुकसान भी होता है। यहां पर भर्ती हो तो समय के साथ-साथ आर्थिक बचत भी हो। सेना में जाने के प्रति जुनून कम होना देश के हित में नहीं है।
कैप्टन अमरचंद खेदड़, पूर्व सैनिक