तारज के ज्ञानचंद्रमालव ने बताया कि मां के प्रति कस्बे समेत समूचे क्षेत्र की अटूट आस्था का ही प्रमाण है कि आमजन ने पहाड़ी पर मानव श्रंखला बनाकर निर्माण सामग्री समेत अन्य सामान पहुंचा कर उस वक्त पहाड़ी पर भव्य मन्दिर का निर्माण करवाने में सहयोग किया। नवरात्र समेत अन्य दिनों में माता रानी के मंदिर में बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शन को आते हैं।
यह है मन्दिर का इतिहास इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार तारज कस्बे का नाम यहां की ऊंची डूंगरी ( पहाड़ी) पर स्थित तारादेवी की मूर्ति के कारण रखा गया था। 18 वीं सदी में इस डूंगरी पर केवल तारा देवी की मूर्ति थी जो बाद में आकाशीय बिजली गिरने के कारण क्षतिग्रस्त हो गई थी। यह मूर्ति आज भी इस मंदिर में है, तारा देवी मां दुर्गा का ऐसा स्वरूप है जो भक्तों को ज्ञान और शक्ति प्रदान करती है। अब इस मंदिर में दुर्गा मां के स्वरूप की नवीन मूर्ति स्थापित है जिसे तारा तारा देवी के रूप में पूजा जाता है।
अब मंदिर तक बन गई सड़क
- तारा डूंगरी तारज में स्थित मां तारा देवी के पहाड़ी पर मंदिर तक अब डामर सड़क बन गई है। ऐसे में बाइक, कार सहित सभी वाहन मंदिर तक जा सकते हैं। पहले के जब पहाड़ी पर चढ़ने का रास्ता नहीं था तब ग्रामीण समेत मां के भक्त मान्यता के अनुसार पहाड़ी पर चढ़ने से पहले मां के नाम का जयकारा लगाकर छोटा कंकर हाथ में लेकर 800 फ़ीट ऊंची पहाड़ी को पैदल चढ़ते थे। लोगों को बिल्कुल भी थकान महसूस नहीं होती थी, इसे ग्रामीण माता का चमत्कार बताते हैं।