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झालावाड़

मैं भाग्यशाली हूं, श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा देख सकूंगा

31 साल पहले परिवार सहित कारसेवा में गए था अयोध्या

झालावाड़Jan 09, 2024 / 11:04 am

jagdish paraliya

I am lucky, I will be able to see the life of Shri Ram Lala

कारसेवक सेवानिवृत्त व्याख्याता कल्याणमल सोनी

जिस राम मंदिर के निर्माण लिए 31 साल पहले अयोध्या में परिजनों के साथ कारसेवा की थी, उसे आज बनते देख रहा हूं। यह मेरे व परिवार के लिए सौभाग्य की बात है। अयोध्या के उस समय के हालात को आज भी याद कर गर्व होता हैं। अब जब मंदिर बन रहा है तो बेहद खुश हूं। पर इस बात का दुख भी है कि अयोध्या में कार सेवा में साथ रही पत्नी आज यह सब देखने के लिए नहीं हैं। बीमारियों से ग्रसित होने के बावजूद भी पत्नी कारसेवा की थी। अब लगातार टीवी पर देख रहा हूं कि कैसे अयोध्या एक दिव्यधाम बन रहा है। यह बात भवानीमंडी निवासी 77 वर्षीय कल्याणमल सोनी ने कही।


उन्होंने पत्रिका को बताया कि छोटी उम्र में ही आरएसएस के साथ जुड़ गए थे। अयोध्या में कार सेवा के दौरान उनके पास विश्वहिन्दू परिषद के जिला महामंत्री का दायित्व था। वे 2 दिसंबर 1992 को पत्नी कृष्णा बाई व पुत्र के साथ कार सेवक के रूप में ट्रेन से अयोध्या रवाना हुए थे। 3 दिसंबर को वहां उतर गए थे। 4 दिसंबर को बाबरी ढांचे को लेकर कोर्ट का फैसला आने वाला था। इस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद 5 दिसंबर को संघ से संदेश आया कि महिलाएं हवन व साफ-सफाई की व्यवस्था देखेंगी। प्रत्येक पुरूष पास स्थित सरयू नदी से चार-चार मुठ्ठी रेत लेकर आएंगे।


कारसेवकों के लिए भोजन की व्यवस्था राजस्थान के एक-एक जिले को दी जाती थी। जब 6 दिसंबर को हम कार सेवक भोजन की व्यवस्था कर रहे थे, तब कुछ कार सेवक आए और बोले जय श्रीराम हो गया है काम। बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाने का काम शुरू हो गया है। इसके बाद हम सभी लोगों ने 36 घंटे तक ढांचे को ढहाने का काम किया। दूसरे दिन सुबह करीब 5 बजे फोर्स आ गई। इसके बाद सभी को पाबंद कर घरों के लिए रवाना कर दिया। सभी कार सेवक ट्रेन से घर आ रहे थे, तब बाराबंकी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पर पथराव हुआ था। आठ दिसंबर को जब भवानीमंडी पहुंचे तो प्रशासन ने प्रत्येक कार सेवक को गांव ले ले जाकर घर तक छोड़ा था।


अयोध्या में माता-पिता से हुई थी मुलाकात
कल्याणमल सोनी के पुत्र कोटा में पुलिस उपाधीक्षक राजेश सोनी ने बताया कि 1992 में वे 17 साल के थे और झालावाड़ कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। तब वे अपने दोस्तों के साथ झालावाड़ से कारसेवा के लिए अयोध्या पहुंच गए थे। वहां पर दोस्तों के साथ राजस्थान से आने वाले कारसेवकों के लिए ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था में लगे हुए थे। माता-पिता के कारसेवा के लिए अयोध्या पहुंचने पर उनसे मुलाकात हुई। वहां तीनों ने राम मंदिर के लिए कारसेवा की थी।

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