क्रशर खदानों के धूल से ग्रामीण परेशान
जिले के क्रशर खदानें से निकलने वाली बारीक पत्थरों के धूल कणों से वहां रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है और वहां हो रही हेल्को ब्लास्टिंग से लोगों का मकान, दुकान और आफिसों में दरारें पड़ रही है। इसकी शिकायत ग्रामीणों ने कलेक्टर से की है।
क्रशर खदानों के धूल से ग्रामीण परेशान
जांजगीर-चांपा। बताया जा रहा है कि जिले के क्रशर खदान में खनिज विभाग द्वारा तय किए गए मानकों का पालन नहीं कर रहा है। इसके बाद भी क्रशर संचालकों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो रही है। खनिज विभाग के मानक अनुसार खदानों में काम करने वाले कामगारों को सुरक्षा उपकरण गम बूट, हेलमेट और वहां के वातावरण के हिसाब से खास कपड़े जो कामगारों के स्वास्थ्य को नुक्कसान होने से बचाने उपलब्ध कराया जाना चाहिए लेकिन क्रशर मालिकों के द्वारा सुरक्षा उपकरण के नाम पर कुछ भी नहीं है। कामगार खुले पैर और खुले सिर पत्थर तोडऩे और निकालने मजबूर हैं।
पौधरोपण के नाम पर ठूंठ
खनिज विभाग के मानक के अनुसार क्रशर खदान के चारों ओर पौधरोपण कराना चाहिए। जिससे खदान से निकलने वाली बारीक धूल के कण को पेड़ खुद में अवशोषित कर सके और ग्रामीणों या आसपास के लोगों को पत्थरों के बारीक धूल के कणों से फेफड़ों में बीमारी सिलिकोसिस न हो या बीमारी के प्रभाव को कम से कम किया जा सके। लेकिन क्रशर खदान मालिकों द्वारा सारे मापदंड और नैतिकता खूंटी में टांग दिया गया है।
गुड़ चना वितरण भी नहीं
क्रशर खदान में काम करने वाले कामगारों को रोज खदानों से निकलने वाली बारीक पत्थरों के धूल के कणो को न चाहते हुए भी खाना पड़ रहा है। जिससे भविष्य में उनके फेफड़ों के खराब होने और सिलिकोसिस होने का खतरा है। इस खतरे को कम करने कामगारों को गुड़ और चना रोज शाम को देने का प्रावधान है। जिससे कामगारों के गले और पेट में गए पत्थर के बारीक टुकड़े चना और गुड़ के साथ चिपककर पेट में चली जाए और शरीर से बाहर आ जाए, लेकिन इन क्रशर कुबेरों ने मानवीयता की सारी हदें लांघ दी है।
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