जांजगीर चंपा

जहर खुरानी के बढ़ रहे मामले, छह माह में 216 लोगों ने खाया जहर, 10 की मौत

Janjgir Champa News: जिले में जहर खुरानी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। छह माह में ही 216 लोगों ने जहर खाया है।

जांजगीर चंपाOct 14, 2023 / 02:33 pm

Khyati Parihar

जहर खुरानी के बढ़ रहे मामले

जांजगीर-चांपा। Chhattisgarh News: जिले में जहर खुरानी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। छह माह में ही 216 लोगों ने जहर खाया है। साथ ही 10 लोगों की जहर खाने के बाद अस्पताल पहुंचते ही कुछ घंटों बाद ही मृत्यु हो गई। वहीं विशेषज्ञ कह रहे कि इस मानसिकता के लिए नशा और डिप्रेशन सबसे बड़ी वजह है।
समय में अस्पताल पहुंचने पर जान बच जा रही है। अभी कुछ का इलाज अस्पताल में चल रहा है तो बहुत स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हो चुके हैं। यह केवल जिला अस्पताल का आंकड़ा है। बाकी अन्य सरकारी व निजी अस्पताल की बात करें तो यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। इसका बड़ा कारण नशा ही तनाव बढ़ा रहा है। लगातार जहर सेवन के बाद लोग डिप्रेशन में आकर जहर सेवन कर रहे हैं।
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जिले में जहर खाने वालों की संख्याओं में लगातार इजाफा होता जा रहा है। अगर हम आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो जिले में हर दूसरे दिन एक व्यक्ति को जहरीला पदार्थ खाने की वहज से भर्ती किया जा रहा है। और मौत हो रही है। इसमें अधिकांशत: देखने में मिल रहा है कि जो व्यक्ति बच जाता है, उसमें से अधिकांश लोग लड़ाई-झगड़ा व नशे के कारण डिप्रेशन व धोखे से जहर खाने की बात कहते हैं। जबकि 20 फीसदी लोग जहर खाने का कारण किसी रंजिश या पारिवारिक विवाद को बताते हैं। यह क्रम निरंतर चलता रहता है। लेकिन बीते साल की तरह इस वर्ष यह सिलसिला कुछ अधिक ही तेजगति से आगे बढ़ रहा है। जिसमें छोटी-छोटी बातों पर जहर खाने से भी मरीजों को भर्ती किया जा रहा है।
अप्रैल से सितंबर 2023 तक 6 माह में ही 216 लोगों ने जहर खाया था। वहीं 6 माह में 10 लोगों की मौत भी हो गई। बाकी की जान बच गई। इसमें 15 वर्षीय किशोरी व युवा से लेकर 75 साल के बुजुर्ग ने ऐसा आत्मघाती कदम उठाया है। डॉक्टरों ने यह भी बताया कि त्यौहारी सीजन में जहर खुरानी के मामले ज्यादा आते हैं। इन दिनों रोज जिला अस्पताल में केस जहर खाने के बाद इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। जो समय पर पहुंच जाता है उसकी जान बच रही है। समय पर नहीं पहुंच पाने वाले मरीजों को बचाना मुश्किल हो जाता है। 95 फीसदी मरीजों की जान इलाज के बाद बच जाती है।
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जहर सेवन का मुख्य कारण नशा

लोग क्यों जहर खा रहे हैं यह पूछने पर जिला अस्पताल के एक्सपर्ट डॉक्टरों ने मुख्य कारण नशे को बताया। शुरूआत में तो कुछ भी नशा अच्छा लगता है लेकिन बाद में डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। नशा करने के बाद जब लोग घर पहुंचते हैं। परिवार से बहस होने के बाद जहर पी लेते हैं। अधिकांश मामले नशे से जुड़े ही होते हैं। बहुत कम केस ऐसे आते हैं जो फाइनेंशियल प्रॉब्लम या फिर अन्य किसी तनाव से परेशान होकर लोग खुदकुशी करने के लिए जहर पीते हैं।
4 घंटे में अस्पताल पहुंचना जरूरी

जिला अस्पताल के आरएमओ डॉक्टर अश्वनी राठौर का कहना है कि जिला अस्पताल में रोज तीन से चार केस जहर खुरानी के आ रहे हैं। अधिकांश लोग नशे की लत के कारण जहर खा रहे हैं। आदत से मजबूर लोग जब नशा करके घर जाते हैं तो परिवार के लोगों ने अगर कुछ कह दिया तो बहस होने लगती है और वो आत्मघाती कदम उठा लेते हैं, इसमें कुछ तो बच जाते हैं और कुछ की मौत हो जाती है।
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जिला अस्पताल में कब पहुंचे कितने मरीज

माह – केस – मौत
अप्रैल – 19 – 1
मई – 49- 2
जून – 21 – 2
जुलाई – 43 – 2
अगस्त – 34 – 2
सितंबर – 50 – 1
महिलाएं भी पीछे नहीं

जिला अस्पताल के आंकड़ों पर गौर करें तो जहर खुरानी में महिलाएं भी पीछे नहीं है। अप्रैल में 7, मई में 27, जून में 7, जुलाई में 29, अगस्त में 18 व सितंबर माह में 26 महिलाएं जहर सेवन के जिला अस्पताल पहुंची हैं। साथ ही अप्रैल में 1, मई में 2, जून में 1 अगस्त में 1 व सितंबर में 1 महिलाओं की जहर सेवन मौत भी हुई है।
एक्सपर्ट व्यू

डिप्रेशन के कारण बनती है इस तरह की स्थिति

जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. अनिल जगत का कहना है कि डिप्रेशन के कारण इस तरह से लोग कदम उठाते हैं। जिसमें इंसान में लक्षण होना पाया जाता है। जिसमें अच्छा न लगना, बेचैन बना रहना, नींद न आना जैसे लक्षण के बाद व्यक्ति इस तरह से गलत कदम उठाता है। परिवार वाले इस पर ध्यान दें तो उसे रोका जा सकता है। किसी भी पारिवारिक परेशानी होती है।
पारिवारिक समस्या फाइनेंसियल लॉस होने पर वह आवेश में रहता है। जो इस तरह से जहर खाने का गलत कदम उठा लेता है। इसलिए परिवार वालों को इस तरह के लक्षणों पर परिवार के सदस्य का ध्यान रखना चाहिए। समय से काउंसलिंग लें, डॉक्टर की सलाह लें। उन्होंने बताया कि कुछ लोग धोखे से जहर खाते हैं और कुछ लोग डराने के लिए खा लेते हैं। जिले में आने वाले केसों में डिप्रेशन के केस 50 प्रतिशत होते हैं। जिन्हें बचाया जा सकता है।
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