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जांजगीर चंपा

Halshashthi Vrat 2024: 24 को हलषष्ठी पूजन, 120 से 100 रुपये किलो तक बिका पसहर चावल

Halshashthi Vrat 2024: जांजगीर-चांपा में हलषष्ठी पर्व पर पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले पसहर चावल की बिक्री शुरू हो गई है। हलषष्ठी पर्व को 2 दिन बचे हैं। बता दे कि बाजार में पसहर चावल फिलहाल 100-120 किलो बिक रहा है।

जांजगीर चंपाAug 23, 2024 / 03:26 pm

Shradha Jaiswal

Halshashthi Vrat 2024:
Halshashthi Vrat 2024: छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में हलषष्ठी पर्व पर पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले पसहर चावल की बिक्री शुरू हो गई है। हलषष्ठी पर्व को 2 दिन बचे हैं, लेकिन पसहर चावल कहीं खत्म न हो जाए और पूजा वाले दिन कीमत न बढ़ जाए, इसलिए महिलाएं चावल खरीदने लगी हैं।
आम दिनों में पसहर चावल को लोग बाग नहीं खरीदते मगर हलषष्ठी में पूजा के लिए बिना हल जोते पैदा होने वाले अनाज का महत्व होने के कारण इसकी मांग बढ़ जाती है। पसहर चावल की पैदावार कम होने और पूजा में इसके महत्व के चलते यह सुगंधित चावल से दोगनी-तिगुनी कीमत पर बिकता है। बाजार में पसहर चावल फिलहाल 100-120 किलो बिक रहा है। पूजा से एक दिन पहले इसकी कीमत 150 रुपए से भी अधिक हो सकती है। इसके अलावा बाजार में पूजन की अन्य सामग्री महुआ, दोना, टोकनी, लाई व अनेक प्रकार की भाजियां आदि भी महंगे दामों में मिलते हैं।\
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Halshashthi Vrat 2024: घर-घर में महिलाएं करती है पूजा

कचहरी चौक के पास पसहर चावल बेच रही महिलाओं ने बताया कि पसहर चावल खेत, खलिहानों में नहीं उगाया जाता बल्कि यह अपने आप नालों, तालाबों, पोखरों, गड्ढों के किनारे उगता है। इसे साफ-सफाई करके बाजार में बेचा जाता है। एचएमटी, दुबराज, जवाफूल आदि सुगंधित चावलों की तरह पसहर चावल में सुगंध व स्वाद नहीं होता किन्तु छत्तीसगढ़ की संस्कृति में हलषष्ठी पर जिले में घर-घर में महिलाएं पूजा के दौरान पसहर चावल को पकाकर भोग लगाकर उसका सेवन करती हैं। इसी मान्यता के चलते पसहर चावल की मांग बढ़ जाती है और खरीदने वालों की भीड़ के कारण कीमत भी बढ़ जाती है।
Halshashthi Vrat 2024:

पूजा में बिना हल चले होने वाली फसल की मान्यता

पं. हरनारायण तिवारी के अनुसार शास्त्रीय मान्यता है कि भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। कृषि कार्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले हल को शस्त्र के रूप में बलराम धारण करते थे। इसके चलते इस पर्व को हलषष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ की महिलाएं हलषष्ठी व्रत की पूजा में बिना हल जोते पैदा होने वाले अनाज का भोग लगाकर पूजा करती हैं। साथ ही छह प्रकार की भाजी और दूध, दही का भी भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद महिलाएं पसहर चावल को पकाकर व्रत तोड़तीं हैं। बिना हल जोते अपने आप पैदा होने वाले अनाज को ही पसहर चावल के नाम से जाना जाता है।

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