बरसात में खूब निकलते हैं: बारिश के दिनों में मगरमच्छ के बच्चे गांव की गलियों में ये विचरण करते रहते हैं लेकिन ऐसे मगरमच्छों को लोग पहले तो अपने घरों में खिलौने की तरह रखते हैं फिर इसे पार्क में छोड़ देते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि अब तक मगरमच्छों के हमले से किसी की जान नहीं गई। हमले से किसी का हाथ कटा, किसी का पांव काटना पड़ा, एक बच्चे का गला दबोच लिया था लेकिन सभी इलाज से ठीक हो गए। गांव के सीताराम दास तो अपना हाथ गंवाने के बाद मगरमच्छों के मुरीद हो गए। यहां तक कि उनकी आवाज से पानी में तैर रहे मगरमच्छ (Crocodile Park In Chhattisgarh Kotmisonar Janjgir) दौड़े चले आते हैं।
1857 से पाए जा रहे मगरमच्छ
कोटमीसोनार गांव के वरिष्ठ नागरिक सीताराम दास एवं शंकर लाल सोनी ने बताया कि यहां 1857 के कल्चुरी राजा के समय से यहां बड़ी संख्या में मगरमच्छ पाए जा रहे हैं। आसपास के गांवों पोड़ीदल्हा, कल्याणपुर, रसेड़ा, अर्जुनी, अकलतरी में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है। कोटमीसोनार में कर्रा नाला डेम में भी काफी संख्या में मगरमच्छ हैं।
पार्क का निर्माण 2006 में तत्कालीन कलेक्टर सोनमणी बोरा ने किया था। इसके पीछे 30 करोड़ खर्च हुए थे। इसके बाद गांव के आसपास के जितने भी मगरमच्छ निकलते हैं उन्हें पार्क में शिफ्ट किया जाता है। आज इनकी संख्या 400 से अधिक है।
पार्क में हैं 400 से अधिक मगरमच्छ
गांव में जब भी मगरमच्छ निकलता है तब उन्हें रेस्क्यू कर पार्क में शिफ्ट किया जाता है। मगरमच्छ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम मगरमच्छ को पकड़ लेती है। आज तक इससे जनहानि नहीं हुई है।
– सौरभ सिंह, डीएफओ