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जैसलमेर

तनोट माता का मंदिर: पाकिस्तान ने यहां गिराए थे सैकड़ों बम, लेकिन एक भी नहीं फटा

Tanot Mata Mandir: पाक सीमा से सटे व जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट माता का मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की भी श्रद्धा का भी केन्द्र है। देश भर से श्रद्धालु नत मस्तक होने पहुंचते हैं।

जैसलमेरOct 03, 2019 / 10:17 am

Santosh Trivedi

जयपुर। Tanot Mata Mandir: पाक सीमा से सटे व जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट माता का मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की भी श्रद्धा का भी केन्द्र है। देश भर से श्रद्धालु नत मस्तक होने पहुंचते हैं। तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की पूजा-अर्चना सीमा सुरक्षा बल के जवान ही करते हैं। नवरात्रि के मौके पर तनोट मंदिर में आस्था का ज्वार उमड़ता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शनार्थ पहुंचते है और मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। हर दिन दोपहर 12 बजे व शाम 7 बजे आरती की जाती है।

 

विख्यात माता तनोट के मंदिर में होने वाली तीनों आरतियों में समूचा मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से भर जाता है और मंदिर में आरती के बाद परिसर मातारानी के जयकारों से गूंज जाता है। तनोट राय मन्दिर आमजन की आस्था का केन्द्र भी बनता जा रहा है। भारत-पाकिस्तान के 1965 व 1971 के युद्ध के बाद मंदिर ने विशेष ख्याति बढ़ी है। तनोट माता को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। माता तनोट के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखने वाले भक्त मंदिर में रुमाल बांधकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का आभार व्यक्त करने वापिस दर्शनार्थ आते है और रुमाल खोलते है। यह मान्यता भी कई सालों से चल रही है।

 

इस परम्परा का आम लोगों के साथ माता के दर्शनार्थ तनोट आने वाले मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, सेना व सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी व जवान भी निर्वहन करते है । पाक सीमा से सटे जैसलमेर में दुश्मन ने बम बरसाकर लोगों को दहशत में डालने और नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन युद्ध में मंदिर के आस पास करीब तीन हजार बम बरसाए और करीब साढ़े चार सौ गोले मंदिर परिसर में गिरे बम फटे ही नहीं ये बम आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है। पाक सीमा से सटे व जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट क्षेत्र में स्थित माता के मंदिर में 1965 व 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर से गिराए गए बमों में से एक भी बम यहां नहीं फूटा।

 

तनोट क्षेत्र सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यहां तैनात बल व क्षेत्र के बुजुर्गों के बताए अनुसार मुगल बादशाह अकबर के हिन्दू देवताओं के चमत्कारिक कारनामों से प्रभावित होकर विभिन्न मंदिरों में दर्शन करने और छत्र वगैरह चढ़ाने के किस्से भले ही प्रमाणित न हों, लेकिन इस बात के तो आज भी कई चश्मदीद गवाह मौजूद हैं कि 1965 के युद्ध के दौरान एक प्राचीन सिद्ध मंदिर की देवी के चमत्कारों से अभिभूत पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भी उसके दर्शन के लिए लालायित हो उठे थे। चमत्कारिक माने जाने वाला यह मंदिर 1200 साल पुराना है। बताया जाता है कि वर्ष 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। करीब ढाई साल की जद्दोजहद के बाद भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने न केवल माता की प्रतिमा के दर्शन किए बल्कि मंदिर में चांदी का एक सुंदर छत्र चढ़ाया। ब्रिगेडियर खान का चढ़ाया हुआ छत्र आज भी इस घटना का गवाह बना हुआ है।

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