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जैसलमेर

दुर्ग के परकोटे को ‘अजेय’ बनाने की कवायद, शिव मार्ग पर एक हिस्से का काम पूरा

कलात्मक सुंदरता व उत्कृष्ट निर्माण शैली के कारण विश्व धरोहरों की फेहरिस्त में शामिल ऐतिहासिक सोनार किले के परकोटे की दीवार का काफी हिस्सा खतरनाक अवस्था में है। इसके मद्देनजर पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग की तरफ से पिछले महीनों में शुरू किए गए शिव मार्ग पर करीब 20 मीटर हिस्से की दीवार का काम पूरा हो गया है।

जैसलमेरJul 07, 2024 / 08:23 pm

Deepak Vyas

jsm enws
कलात्मक सुंदरता व उत्कृष्ट निर्माण शैली के कारण विश्व धरोहरों की फेहरिस्त में शामिल ऐतिहासिक सोनार किले के परकोटे की दीवार का काफी हिस्सा खतरनाक अवस्था में है। इसके मद्देनजर पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग की तरफ से पिछले महीनों में शुरू किए गए शिव मार्ग पर करीब 20 मीटर हिस्से की दीवार का काम पूरा हो गया है। इसके साथ लगती दीवार का हिस्सा आगामी मानसून काल में संभावित मूसलाधार बारिश के दौरान अब भी जोखिम का कारण बन सकता है। हालांकि विभाग की तरफ से भविष्य में शेष बचे कार्य को पूरा करवाने की योजना है। गौरतलब है कि राजस्थान पत्रिका ने विगत अर्से के दौरान लगातार इस बड़ी समस्या को पुरजोर ढंग से उठाया गया था। बीते तेज गर्मी के मौसम में सैकड़ों साल प्राचीन सोनार दुर्ग के परकोटे की शिव मार्ग से सटी दीवार के एक हिस्से का पुनर्निर्माण तेज गति से पूरा हुआ है। भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग की तरफ से करवाए जा रहे इस कार्य से परकोटे की पुरानी और अत्यधिक मिट्टी व अन्य पत्थरों आदि के दबाव से दरक रही दीवार को जैसलमेरी पत्थरों से नया बनाया गया है।

पुरानी तकनीक से काम

पुरातत्व विभाग की तरफ से पिछले दो दशकों के दौरान सोनार दुर्ग की प्राचीर के पुनर्निर्माण में वही तकनीक काम में ली जा रही है जिससे यह सोनार दुर्ग पूर्व में बनाया गया था। लगभग प्राचीर का कार्य हो चुका है। प्राचीर के पुनर्निर्माण कार्य से दीवार को न केवल मजबूती मिल रही है बल्कि इससे दुर्ग के बाहरी क्षेत्र की खूबसूरती में भी इजाफा हुआ है। इस बीच आज भी सोनार दुर्ग के परकोटे का करीब 200 मीटर का हिस्सा पुराना और कई जगहों से जर्जर होने के बाद चिंता का सबब बना हुआ है। उसमें कहीं-कहीं पर बड़े पत्थर अपनी जगह छोडकऱ बाहर आते प्रतीत होते हैं। तेज बारिश के दौरान मिट्टी का कटाव हुआ तो पूर्व में हुए हादसों की पुनरावृत्ति से भी इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि विभाग के सूत्रों का कहना है कि टुकड़ों-टुकड़ों में शेष बची दीवार के नवनिर्माण का कार्य भी करवाया जाएगा। उनके अनुसार आने वाले समय में शेष बचे कार्य को भी पूरा करवाया जाएगा।

1997 में हुई थी भयावह दुर्घटना

  • सोनार दुर्ग के परकोटे की दीवारें दरकने और उनके ध्वस्त होने की कई घटनाएं अब तक सामने आई हैं। इनमें सबसे भयावह घटना 1997 में हुई थी।
  • तब शाम के समय गोपा चौक में आई परकोटे की दीवार एकदम से धराशायी हो गई थी और दीवार में चुने हुए भारी-भारी पत्थरों व मलबे में दब कर 6 जनों की जान गई थी। जिससे कोहराम मच गया था। बाद में इस क्षेत्र की दीवार को पुन: बनाया गया।
  • ऐसी ही एक घटना बरसाती सीजन में गोपा चौक से सटी दीवार का एक हिस्सा ध्वस्त होने से हुआ। संयोगवश वह हादसा तडक़े हुआ, तब उसके नीचे कोई नहीं था। बाद में साल 2016 में भी गोपा चौक पुलिस चौकी के सामने किले की दीवार के पुनर्निर्माण के समय हुआ। तब भी मजदूर सावचेत थे, लिहाजा कोई जनहानि नहीं हुई।
  • यहां पर है खतरे की आशंका
    जैसलमेर के हृदय स्थल गोपा चौक से शिव मार्ग तक और सोनार दुर्ग के परकोटे दीवार के अन्य हिस्सों पर कई जगह दीवार क्षतिग्रस्त और वक्त के थपेड़ों से कमजोर हो चुकी है। तेज अंधड़, तूफान, अतिवृष्टि या फिर भूकम्प के झटके से दीवार ढहने की आशंका बनी रहती है। कहीं-कहीं पर तो पत्थर इतने बाहर निकल चुके हंै कि वाहन चालक या राहगीर या फिर आसपास रहने वाले लोग व दुकानदारों की जिंदगी पर खतरा बना हुआ है। विगत वर्षों में बारिश के बढ़ते दौर और भूकम्प के झटकों ने दुर्ग को कमजोर किया है। जल-मल की माकूल निकासी न होने से स्थिति और विकट हो गई है। दुर्ग के परकोटे की दीवार पर लगातार दबाव बढ़ रहा है।
    फैक्ट फाइल –
  • 867 वर्ष पुराना है जैसलमेर दुर्ग
  • 400 से ज्यादा परिवार दुर्ग में निवासरत
  • 02 वार्ड में विभक्त है ऐतिहासिक सोनार किला

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