सीनियर हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. उपेंद्र शर्मा ने बताया कि क्रायोग्लोबियोलिमिया होने के कई कारण हो सकते हैं। सर्दी के अलावा ब्लड कैंसर, हेपेटाइटस और दूसरे ऑटोइम्यून रोगों के कारण हमारे रक्त में यह विकार हो सकता है। यह तीन प्रकार का होता है जिसमें मरीज के शरीर में थक्के बनने लगते हैं। ज्यादातर मामलों में गंभीर स्थिति में पहुंचने से पहले इस रोग का पता नहीं चल पाता लेकिन रोग के चरणों के आधार पर इसके लक्षण गंभीर होते जाते हैं।
गैंगरीन से लेकर ब्रेन स्ट्रोक जैसे गंभीर प्रभाव
क्रायोग्लोबियोलिमिया में मरीज को कई तरह के गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। शुरूआत में मरीज के हाथ-पांव के उंगलियों में सुन्नपन, त्वचा का गलना हो सकता है। ऐसा रक्त प्रवाह रुकने के कारण होता है और अधिक समय तक ऐसी स्थिति बनी रही तो प्रभावित अंग में गैंगरीन भी हो सकता है। क्रायोग्लोबियोलिमिया के 10 से 20 प्रतिशत मामलों में मरीज को सांस में तकलीफ और खांसी की समस्या हो सकती है। ज्यादा गंभीर होने पर उसके फेफड़ों में खून भी जम सकता है। प्लाजमा में क्रायोग्लोबियंस की संख्या बढ़ने पर खून गाढ़ा होने लगता है जिससे मरीज की किडनी में खराबी, जोड़ों में समस्या, मांसपेशियों में खिंचाव, थकान, नजर धुंधली होना, चक्कर आना, सिर दर्द, ब्रेन स्ट्रोक जैसी कई जानलेवा स्थितियां हो सकती हैं।
क्रायोग्लोबियोलिमिया जिस बीमारी के साथ आता है, उस बीमारी के इलाज के साथ ही इसे ठीक किया जा सकता है। कैंसर होने पर कीमोथैरेपी, इम्यूनोथैरेपी से, गंभीर स्थिति में मरीज को प्लाजमा एक्सचेंज द्वारा भी इसका उपचार किया जा सकता है। डॉ. उपेंद्र ने बताया कि मरीज की संबंधित बीमारी के इलाज के साथ क्रायोग्लोबियोलिमिया भी ठीक हो जाता है। अगर मरीज को संबंधित लक्षण दिखते हैं तो उसे हेमेटोलॉजिस्ट द्वारा क्रायोग्लोबियोलिमिया से जुड़ी स्क्रीनिंग भी जरूरी करानी चाहिए जिससे इस गंभीर रोग की समय पर पहचान हो और इसका इलाज समय पर हो सके।