दरअसल चरागाह भूमि पर खानों का आवंटन करने के लिए पिछली सरकारों ने गली निकाली थी, लेकिन राजस्थान काश्तकारी नियम 1955 के नियम 7 में बार-बार बदलाव करने से अब चरागाह भूमि का खनिज वाले क्षेत्रों से पूरी तरह खत्म होने का खतरा बढ़ गया है। जबकि ओरण, देव, वन और उपवनों की भूमि को संरक्षित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट राज्यों को कड़ी फटकार लगा चुका है।
फिर भी लापरवाही
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही राजस्थान सरकार को ओरण, देव, वन और उपवनों की भूमि को वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत संरक्षित करने का निर्देश दिए और पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन के आदेश दिए हैं। समिति हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनाई जाए, जिसमें वन विभाग के अधिकारी व विषय विशेषज्ञ शामिल होंगे।
खनन माफिया के दबाव से नियमों में छूट
राजस्थान में कुछ साल पहले तक खान विभाग चरागाह और वन भूमि पर खान आवंटन को लेकर सावधानी बरत रहा था, लेकिन राज्य सरकारों की ओर से खान माफिया के दबाव में काश्तकारी नियमों में छूट देकर चरागाह भूमि पर खनन करने का रास्ता साफ कर दिया है। अब खान विभाग चरागाह भूमि पर खान आवंटन के लिए प्लॉट चिह्नित करने में तेजी से जुटा है। इससे राज्य के पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका बन गई है। राजस्थान का अधिकांश ग्रामीण समुदाय अपनी आजीविका के लिए पशुपालन पर निर्भर है और चरागाह भूमि इन समुदायों के लिए जीवन रेखा का काम करती है। खानें आवंटित होने से की चारे की उपलब्धता भी प्रभावित होगी।
40 खान चरागाह भूमि पर चिन्हित
खान विभाग ने 40 खान चरागाह भूमि पर चिन्हित की है। यह खानें विभिन्न जिलों में स्थित हैं। विभाग ने कहा कि इन खानों की भूमि चरागाह है। अत:
राजस्थान काश्तकारी नियम के प्रावधानों के अनुसार उच्चतम बोलीदाता को उक्त प्लॉट में आने वाली चारागाह भूमि के बराबर खातेदारी भूमि राज्य सरकार को समर्पित करनी होगी।
पहले वन विकास अब खनन
राज्य में फिलहाल जिन 269 खानों की नीलामी प्रक्रिया चल रही है। इनमें 51 खान उस भूमि पर चिन्हित की गई हैं, जहां 5 वर्ष के लिए पेड़ लगाने के लिए आवंटित थी और पेड़ लगा दिए गए और अब यहां वन विभाग के नियमों की पालना का हवाला देकर खानें नीलाम की जा रही हैं।
यों तो कई गांवों से खत्म हो जाएंगे चरागार
खान माफिया के दवाब में राज्य सरकार ने खनन के लिए आवंटित की जाने वाली भूमि की एवज में उतनी ही भूमि चरागाह के लिए राज्य सरकार को समर्पित करने के लिए कहा है। यह जमीन खान आवंटन वाली ही ग्राम पंचायत, निकटस्त ग्राम पंचायत या फिर जिले में किसी भी स्थान पर जमीन लेकर सरकार को दी जा सकती है। इससे खनिज और चरागाह भूमि का संतुलन बिगड़ेगा। बड़ी बात यह है कि यदि खातेदारी भूमि हुई तो उसे चरागाह भूमि गांव में विकसित करना मुश्किल होगा।
राज्य में 6 लाख हैक्टेयर ओरण भूमि
प्रदेश में करीब 6 लाख हैक्टेयर ओरण भूमि है। इसमें से करीब 5 लाख 37 हजार हैक्टेयर ओरण भूमि अकेले पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में है। प्रदेश में कुल ओरण 25 हजार हैं, इनमें से 1100 बड़े ओरण हैं।