14 मई को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद से मंडी की कीमतें तेज चल रही थी। इस साल उत्पादन कम रहा और सरकार ने सही समय पर निर्यात बंद नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने तक बहुत सारा गेहूं पहले ही निर्यात हो चुका था। यह पहले किया जाना चाहिए था।’ कारोबारियों ने कहा कि गेहूं की कीमतों में जहां करीब 14 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं आटे की कीमतों में करीब 18 से 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
गुप्ता ने कहा कि गेहूं की कीमतों में वृद्धि के कारणों में अंतरराष्ट्रीय मांग-आपूर्ति की स्थिति, वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि और यूक्रेन-रूस संघर्ष जैसे विभिन्न कारक शामिल हैं। पिछले दो वर्षो के दौरान एमएसपी वृद्धि के अनुरूप गेहूं और चावल की कीमतें बढ़ी हैं।
कीमतों के रुझान को ध्यान में रखते हुए, सरकार समय-समय पर घरेलू उपलब्धता बढ़ाए और सस्ती कीमतों पर उपभोक्ताओं के लिए सुलभ बनाने के विभिन्न उपाय करे। कीमतों को कम करने के लिए सरकार स्टॉक सीमा लागू करना, जमाखोरी को रोकने के लिए संस्थाओं द्वारा घोषित स्टॉक की निगरानी के साथ-साथ व्यापार नीति के उपकरणों में आवश्यक परिवर्तन जैसे आयात शुल्क का समीकरण, आयात कोटा में परिवर्तन, वस्तु के निर्यात पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाए।