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जयपुर

राजस्थान की इस जनजाति में पहले रहना होता है लिव-इन में, बच्चा होने पर ही होती है शादी

लिव-इन में रहने के बावजूद भी यदि बच्चे नहीं हुए तो उनको अलग होना पड़ता हैं। फिर किसी और के साथ लिव-इन में रहकर बच्चे पैदा करने होते हैं…

जयपुरMar 13, 2018 / 02:51 pm

dinesh

Garasia Tribe
जयपुर। रंगीले राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाली जनजातियों की परम्पराएं भी बहुत ही विचित्र है। इन्हीं जनजातियों में ऐसी एक जनजाति है ‘गरासिया‘ जो मुख्यत: राजस्थान के कुछ हिस्सों में रहती है। इस जनजाति के युवा मर्द पहले पसंद की लडक़ी के साथ लिव-इन में रहते हैं। बच्चे पैदा होने के बाद ही दोनों को शादी के बंधन में बंधने की समाज द्वारा अनुमति दी जाती है।
बच्चे नहीं होने पर हो जाते है अलग

लडक़ा और लडक़ी के लिव-इन में रहने के बावजूद भी यदि बच्चे नहीं हुए तो उनको अलग होना पड़ता हैं। फिर किसी और के साथ लिव-इन में रहकर बच्चे पैदा करने होते हैं।

आपसी सहमति से रहते हैं एक दूसरे के साथ
राजस्थान के उदयपुर , सिरोही और पाली जिले में गरासिया जनजाति रहती है। इस जनजाति की ये अनोखी परंपरा आज की मॉडर्न सोसाइटी की लिव-इन रिलेश्नशिप से मिलती-जुलती है। इस जनजाति में जवान होने के बाद लडक़े-लड़कियां आपसी सहमति से एक दूसरे के साथ रहते हैं और संबंध बनाते हैं।

कई बार जवान बेटे और पोते भी शादी में होते हैं शामिल
लिव-इन रिलेश्नशिप रहते हुए बच्चे पैदा हो जाने पर ही ये शादी करते हैं। कई बार बच्चे पैदा होने के बाद भी परिवार की जिम्मेदारियों के चलते ये शादी को टालते रहते हैं। ऐसे में 50 या इससे अधिक की उम्र में भी ये इस रिश्ते को शादी का अमली जामा पहनाते हैं। कई मौके तो ऐसे भी आते हैं जब इनके जवान बेटे और पोते भी इनकी शादी में शामिल होते हैं। पिछले साल ही एक 80 साल के बुजुर्ग ने अपनी 70 वर्षीय लिव-इन पार्टनर से शादी की थी। इस अनोखी शादी में उनके पड़पोते तक शामिल हुए थे।

ऐसे बनी लिव-इन की ये धारणा
सालों पहले गरासिया जनजाति के चार भाई कहीं और जाकर बस गए। इनमें से तीन ने शादी की और एक समाज की कुंवारी लडक़ी के साथ लिव-इन में रहने लगा। शादीशुदा तीनों भाइयों के कोई औलाद नहीं हुई बल्कि लिव-इन में रहने वाले भाई के बच्चे हुए और उसी से वंश आगे बढ़ा। बस इसी धारणा ने समाज के लोगों के जेहन में इस परंपरा को जन्म दिया। कहते हैं इन जनजाति में ये ट्रेडिशन 1 हजार साल पुराना है। यह परम्परा दापा प्रथा कहलाती है।

लगता है ‘विवाह मेला’
इस जनजाति का दो दिन का ‘विवाह मेला’ भी लगता है, जिसमें लडक़े-लड़कियां एक-दूसरे से मिलते हैं और भाग जाते हैं। भागकर वापस आने पर बिना शादी के ही पति-पत्नी की तरह साथ रहते हैं। इस दौरान सामाजिक सहमति से लडक़ी वाले को कुछ पैसे लडक़े वाले देते हैं। इस दौरान यदि औरत चाहे तो किसी और मेले में दूसरा लिव इन साथी भी चुन सकती हैं। इसके लिए नए लिव इन पार्टनर को पहले पार्टनर की तुलना में ज्यादा पैसा देना पड़ता है।

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