ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि मूलत: यह व्रत माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है. भविष्योत्तर पुराण में इस व्रत का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि सबसे पहले भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी को इसकी महिमा बताई थी। शिव-पार्वती की पूजा की दृष्टि इस व्रत का महत्व हरतालिका, मंगला गौरी, सौभाग्य सुंदरी और गणगौर व्रत की तरह ही है। खास बात यह है कि इस व्रत में नमक का सेवन वर्जित किया गया है.
कुछ क्षेत्रों में यह व्रत आषाढ़ शुक्लपक्ष की त्रयोदशी से श्रावण महीने की तृतीया तिथि तक पूरे 5 दिन तक किया जाता है। व्रत के दौरान फलाहार कर सकते हैं। पंडित दीपक दीक्षित बताते हैं कि सुबह स्नान के बाद हाथ में जल लेकर जया पार्वती व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिव-पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें। इस पूजा से प्रसन्न होकर माता पार्वती सुख—समृद्धि और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।