धनखड़ मंगलवार को बिड़ला ऑडिटोरियम में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जनसंख्या अव्यवस्था कुछ क्षेत्रों को राजनीतिक किलों में बदल रही है, जहां चुनावों का कोई वास्तविक अर्थ नहीं है। यह बेहद चिंताजनक है कि इस रणनीतिक बदलाव से कुछ क्षेत्र अभेद्य गढ़ड़ों में बदल गए है, जहां लोकतंत्र ने अपना सार खो दिया है।
कई देश खो चुके अपनी पहचान
उपराष्ट्रपति ने कहा कि अगर हम इस देश में होने वाली जनसांख्यिकीय उथल-पुथल के खतरों से आंखें मूंद लेते हैं तो यह देश के लिए हानिकारक होगा। खास लक्ष्य को हासिल करने के लिए रणनीतिक तरीके से किया गया जनसांख्यिकीय बदलाव एक भयावह दृश्य पेश करता है। इस चुनौती पर गौर नहीं किया गया तो यह राष्ट्र के लिए अस्तित्व संबंधी खरे में बदल जाएगी। ऐसा दुनिया में हो चुका है।
कुछ लोग अपने को समझते थे कानून से ऊपर
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कुछ लोगों के कानून के शासन की अवहेलना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एक समय था जब कुछ लोग सोचते थे कि वे कानून से ऊपर है। उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त था, लेकिन आज चीजें बदल गई है। आज भी हम संवैधानिक पदों पर ऐसे जिम्मेदार लोगों को देखते हैं, जिन्हें न कानून की परवाह है, न देश की परवाह और कुछ भी बोलते हैं। ये भारत की प्रगति के विरोधी ताकतों द्वारा रची गई एक भयावह योजना है।
जाति, पंथ, समुदाय के आधार पर विभाजित करने की कोशिश
उपराष्ट्रपति ने उन लोगों से उत्पन्न खतरे के बारे में भी बात की जिन्हें उन्होंने अराजकता के चैंपियन कहा। स्वार्थ से प्रेरित ये तत्व, तुच्छ पक्षपातपूर्ण लाभ के लिए राष्ट्रीय एकता का बलिदान दे रहे हैं। वे हमें जाति, पंथ और समुदाय के आधार पर विभाजित करना चाहते है और ये ताकतें भारत के सामाजिक सद्भाव से समझौता करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है।