अभी इसका मूवमेंट सांऊ कुंडयाल के आसपास है। सरिस्का इलाके का ये पहला ऐसा टाइगर है जिसने जमवारामगढ़ इलाके में घर बनाया है। जंगल में दूसरा बाघ नहीं होने से नई टैरेटरी में वर्चस्व की कोई समस्या नहीं है। इसलिए बाघ को यहां की टैरेटरी खासी रास आ रही है।
इस रास्ते से आया
सरिस्का की अजबगढ़ रेंज से नीमला इलाके से सानकोटड़ा आया। सानकोटड़ा से दांतली घाटी, रायसर रेंज के बामनवाटी होते हुए रामगढ़ बांध पहुंचा। यहां से सांउ सीरा के पास कुंडयाल वन क्षेत्र में पहुंचा था। यहां 24 अगस्त 2022 को मवेशियों का शिकार किया।
ऐसे होती है निगरानी
सरिस्का के अधिकारियों ने इस टाइगर की निगरानी के लिए टीम बना रखी है। उसकी देखरेख के लिए ट्रैप कैमरे लगा रखे हैं। जमवारामगढ़, रायसर व अचरोल रेंज में ट्रैप कैमरे टाइगर की लगातार निगरानी कर रहे हैं, ये वन क्षेत्र में हर मूवमेंट पर नजर रखते हैं। सरिस्का बाघ परियोजना के अधिकारी इसकी मॉनिटरिेंग करते रहते हैं। यहां आकर मूवमेंट भी देखते हैं।
जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र की दूरी सरिस्का बाघ परियोजना क्षेत्र के बफर जोन अजबगढ़ रेंज से करीब सत्तर किलोमीटर है। टाइगर एसटी-24 वहां से यहां पैदल चलकर पहुंचा था। पिछले करीब डेढ़ साल से टाइगर का मूवमेंट लगातार जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र में बना है। वह वर्ष-2022 में 24 अगस्त को जमवारामगढ़ सेंचुरी इलाके में देखा गया था।
26 दिन में पहुंचा था: ये टाइगर 30 जुलाई 2022 को सरिस्का से लापता हो गया था, जो यहां जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र में 24 अगस्त 2022 को पहुंचा था। इस प्रकार उसे विचरण करते हुए यहां पहुंचने में कुल 26 दिन लगे थे।
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टाइगर को जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र के जंगल में टैरेटरी व भोजन की कोई समस्या नहीं है। टाइगर के मूवमेंट की लगातार निगरानी की जा रही है। – सागर पंवार, डीएफओ वाइल्ड लाइफ जयपुर
भोजन-पानी की नहीं समस्या: यहां जमवारामगढ़ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र में नीलगाय, बंदर, लंगूर, सांभर, सूअर सहित बड़ी संख्या में जंगली जानवर मौजूद हैं। ऐसे में उसे आसानी से भोजन उपलब्ध हो रहा है। जंगल में पानी के लिए भर्तृहरि का बड़ा बंधा, कई छोटे तालाब, तलाइयां आदि भी हैं। जिससे पानी भी उपलब्ध हो जाता है।