ये पार्टी बनी भाजपा के लिए चुनौती
भाजपा के लिए इस सीट पर कांग्रेस ही नहीं बल्कि इस सीट पर पहली बार चुनाव लड़ने वाली भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) भी चुनौती है। इस सीट पर 2023 के चुनाव में बीएपी पहली बार चुनाव लड़ी और पहली ही बार में बीएपी प्रत्याशी को बड़ी संख्या में वोट मिले। भाजपा प्रत्याशी यहां पहले, कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे और बीएपी प्रत्याशी तीसरे नम्बर पर रहा। कांग्रेस और बीएपी प्रत्याशी के वोटों का अंतर 13 हजार 704 ही रहा। भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा भी कांग्रेस प्रत्याशी से मात्र 14 हजार 691 वोटों से ही जीते थे। बीएपी प्रत्याशी को 24.23 प्रतिशत वोट मिले। इसके बाद से ही आगामी विधानसभा चुनाव के लिए
भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही इस सीट पर नए समीकरण बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव के चंद माह बाद ही उपचुनाव होने से दोनों राजनीतिक दल अभी से ही रणनीति बनाने में जुट गए हैं, जिससे यह सीट बीएपी के खाते में नहीं जा सके। भाजपा इस सीट पर सहानुभूति की लहर की तो उम्मीद कर ही रही है, लेकिन साथ ही जातिगत समीकरण साधने पर भी काम कर रही है।
पांच सीटों में से भी कुछ सीटों पर जीतने की कोशिश
विधानसभा की अन्य पांच सीट लोकसभा चुनाव में जीते सांसदों की वजह से खाली हुईं थीं। इन पांच में से एक भी सीट पर भाजपा का विधायक नहीं था इसलिए भाजपा के पास इन पांच सीटों पर खोने को तो कुछ नहीं है, लेकिन पार्टी इस कोशिश में लगी हुई है कि दो से तीन सीटें अवश्य जीतें। इसके लिए भी पार्टी ने तैयारी शुरू कर दी है। बता दें कि विधानसभा उपचुनाव में 6 सीटों खींवसर, देवली-उनियारा, सलूंबर, चौरासी, झुंझुनूं और दौसा सीटों पर उपचुनाव होने है जिसकी घोषणा जल्द होने वाली है।