scriptअनुसंधान में फॉरेंसिंक साइंस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण: डीजीपी | The role of forensic science in investigation is very important: DGP | Patrika News
जयपुर

अनुसंधान में फॉरेंसिंक साइंस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण: डीजीपी

राजस्थान पुलिस स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में गुरुवार को जयपुर में राजस्थान पुलिस अकादमी (आरपीए) के ऑडिटोरियम में ‘रोल ऑफ फॉरेंसिक्स इन क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन’ पर विशेष सेमिनार का आयोजन किया गया।

जयपुरJun 13, 2024 / 08:01 pm

Lalit Tiwari

राजस्थान पुलिस स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में गुरुवार को जयपुर में राजस्थान पुलिस अकादमी (आरपीए) के ऑडिटोरियम में ‘रोल ऑफ फॉरेंसिक्स इन क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन’ पर विशेष सेमिनार का आयोजन किया गया। इस मौके पर पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) उत्कल रंजन साहू ने कहा कि पुलिस के रोजमर्रा के कार्यों और अनुसंधान में फॉरेंसिंक साइंस की बड़ी अहमियत है। एक जुलाई से लागू होने वाले नए क्रिमिनल लॉ में फॉरेंसिंक साइंस की इंवेस्टिगेशन में भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी।
फेयर ट्रायल के लिए फेयर इंवेस्टिगेशन जरुरी

सेमिनार में उत्तरप्रदेश के अतिरिक्त महानिदेशक, पुलिस एवं यूपी स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक्स के फाऊंडर डायरेक्टर डॉ. जीके गोस्वामी ने अपने ‘कीनोट एड्रेस’ में कहा कि फेयर ट्रायल के लिए फेयर इंवेस्टिगेशन बहुत जरूरी है, यह न्याय के मार्ग को प्रशस्त करता है। ऐसे में पारदर्शी तरीके से सही अनुसंधान के लिहाज से न्याय तंत्र में पुलिस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। आपराधिक मामलों में न्याय के लिए साक्ष्यों (एविडेंस) की गुणवत्ता से ही अनुसंधान के जरिए सच्चाई तक पहुंचने में मदद मिलती है।
आने वाला कल ‘फॉरेंसिक साइंस’ का स्वर्णिम काल

उन्होंने क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन में क्वालिटी ऑफ एविडेंस को इम्प्रूव करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा इसमें जो गैप है, उनको भरने के लिए पूरी शिद्दत के साथ कार्य करने की जरूरत है। ‘फॉरेंसिक साइंस’, ऐसे गैप को दूर करने में मददगार साबित हो सकती है क्योंकि यह अनुसंधान में ‘न्यूट्रल’ रहते हुए सच्चाई को उजागर करने में अहम भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा कि आने वाला समय ‘फॉरेंसिक साइंस’ के लिए स्वर्णिम काल है, विशेषकर आगामी जुलाई से जब देश में नए क्रिमिनल लॉ लागू होंगे तो इनमें इसकी उपादेयता और बढ़ जाएगी।
सच उजागर करना पुलिस अनुसंधान का मूलमंत्र

डॉ. गोस्वामी ने कहा कि अनुसंधान में साक्ष्यों के आधार पर ‘डिसीजन मेंकिंग’ से सच्चाई का पता लगाकर न्याय तक पहुंचने की प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए देश और विदेश के कई प्रसिद्ध कैसेज के व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने फॉरेंसिक विशेषज्ञों के अपने डोमेन में बाकायदा शिक्षित होने के पहलू को रेखांकित करते हुए फॉरेंसिक साइंस लैब के एनएबीएल एक्रीडिएशन को भी जरूरी बताया।
सेमिनार में अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस, पुनर्गठन डॉ. प्रशाखा माथुर ने गोस्वामी का स्मृति चिह्न भेंटकर सम्मान किया। पुलिस महानिरीक्षक, क्राइम ब्रांच प्रफुल्ल कुमार ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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