प्रदेश में रोजाना हजारों लीटर मार्बल, कोटा स्टोन और ग्रेनाइट की स्लरी निकलती है जो कि अनुपयोगी है और उसे डंपिंग यार्ड में डाल दिया जाता है। करीब 800 से 900 टैंकर रोज स्लरी मार्बल और ग्रेनाइट फैक्ट्री से निकलती है। मार्बल और ग्रेनाइट फैक्ट्रियों से रोज निकलने वाली स्लरी को डंपिंग यार्ड में डाल दिया जाता है।
मार्बल स्लरी से भरे यह डंपिंग यार्ड बर्फीली वादियों से नजर आता है। इससे यह प्रदेश का बेहतर फिल्मी शूटिंग लोकेशन स्थल के रूप में भी विकसित हो सकता है। यहां प्री वेडिंग शूटिंग, कई फ़िल्मी गानों और सीरियल की शूटिंग के साथ ही विज्ञापनों को भी शूट किया जा चुका है।
उद्यमियों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार ध्यान केंद्रित करें तो कोटा में स्लरी आधारित उद्योगों की नई श्रृंखला खड़ी हो सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्लरी के उत्पाद ईको फ्रैंडली होते हैं। स्लरी आधारित उद्योग ग्रीन श्रेणी में शामिल किया गया है। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की ने कोटा स्टोन की स्लरी से वैल्यू एडिशन कर उत्पाद बनाने की तकनीकी इजाद की है। यह तकनीक पाषाण वेलफेयर फाउंडेशन को दे दी है। स्लरी आधारित पहला स्टार्टअप 2 साल पहले कोटा में शुरू किया गया था।
— सुधीर जैन, अध्यक्ष, किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन सीबीआरआई की तकनीक के तहत टाइल्स इंटरलॉकिंग तैयार करने में कच्चे माल के रूप में 87 फीसदी कोटा स्टोन की सैलरी उपयोग में आती है। शेष में सेंड स्टोन की गिट्टी, सीमेंट, पानी आदि का उपयोग किया जाता है।
— जितेंद्र फतनानी, संचालक, पाषाण वेलफेयर फाउंडेशन
— लालसिंह धानपुर, ग्रेनाइट एसोसिएशन, जालौर