जयपुर

षटतिला एकादशी: शहर के विष्णु मंदिरों में होंगे आयोजन, सजेंगी गोचारण लीला की विशेष झांकी

भगवान विष्णु की आराधना और तिल के दान के लिए खास मानी जाने वाली माघ मास की एकादशी षटतिला एकादशी इस बार शनिवार को ध्रुव योग में मनाई जाएगी।

जयपुरJan 24, 2025 / 02:43 pm

Devendra Singh

Shattila Ekadashi

जयपुर. भगवान विष्णु की आराधना और तिल के दान के लिए खास मानी जाने वाली माघ मास की एकादशी षटतिला एकादशी इस बार शनिवार को ध्रुव योग में मनाई जाएगी। षटतिला एकादशी को “पापहरनी” यानी सभी पापों का नाश करने वाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है। इसके कारण अक्षय पुण्य की कामना के साथ श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर दान पुण्य कर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करेंगे। इस मौके पर शहर के विष्णु मंदिरों में विशेष आयोजन होंगे। गोविंददेवजी मंदिर में ठाकुरजी का पंचामृत अभिषेक कर नवीन लाल जामा पोशाक धारण कराई जाएगी और राजभोग आरती में मोदकों का भोग लगाया जाएगा। चौड़ा रास्ता स्थित राधा दामोदरजी, मदन गोपालजी, रामगंज बाजार स्थित लाड़लीजी, पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथजी, इस्कॉन, चिंताहरण काले हनुमान जी सहित अन्य मंदिरों में भी कल एकादशी मनाई जाएगी। स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी एक ही दिन व्रत रखेंगे।

दिनभर रहेगी एकादशी

माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 24 जनवरी 2025 की शाम 7:25 बजे शुरू होकर 25 जनी 2025 को रात 8:31 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार व्रत 25 जनवरी (शनिवार) को रखा जाएगा।

ये करें उपाय

इस दिन स्नान के पानी में तिल मिलाएं, काले या सफेद कोई भी हों।

स्नान के बाद गंगाजल में तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें।

भगवान विष्णु की पूजा के दौरान तिल और शक्कर का भोग लगाएं।
तिल का दान करने से शनि के दुष्प्रभाव कम होते हैं।

तिल के लड्डू बनाकर जरूरतमंदों को बांटे।

तिल का महत्व

षटतिला एकादशी का विशेष संबंध तिल से है। मान्यता है कि इस दिन तिल का उपयोग करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। ज्योतिषाचार्य पं. सुरेश शास्त्री के अनुसार मुताबिक, इस दिन भोजन में तिल कर उपयोग जरूर करें। यदि इस दिन तिल के लड्डू, तिल पट्टी, या गुड़ के साथ तिल का सेवन करते हैं, जो इससे जीवन में सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। साथ ही, यह उपाय सुख-शांति प्राप्त करने में सहायक होता है। इससे साधक को पुण्य प्राप्त होता है और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।

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