शेक्सपियरवालाज, उर्दू में शेक्सपियर का अधिक श्रेष्ठ अनुवाद नहीं
शेक्सपियर के नाटकों की सार्वभौमिकता और प्रमुख मानवीय संवेदनाओं ने दुनिया के साहित्य को प्रभावित किया है। शेक्सपियरवालाज सत्र में प्रोफेसर बारां फारूखी तथा लेखिका प्रीति तनेजा ने उर्दू साहित्य के नजरिए से विलियम शेक्सपियर के कथानक की विशेषताओं के बारे में चर्चा की। बारां फारूखी ने कहा कि शेक्सपियर में मैंने टेक्सचुअल पार्ट को दुगुना करते हुए पेश किया है, क्योंकि एक अनुवादक के तौर पर मैं महसूस करती हूं कि उर्दू में शेक्सपियर का अधिक श्रेष्ठ अनुवाद नहीं है, जिससे वे भारत के उर्दूभाषी क्षेत्रों में अछूते रहे हैं। आज उर्दू साहित्य की हालत किसी सड़े हुए सरकारी गंदगी से भी ज्यादा बदबूदार है। जब हम अपने साहित्य को इतना विभाजित करते हैं, तो परंपराओं और शब्दों के श्रृंगार को समाप्त कर देते हैं। हम काव्य का रोमांटिक पक्ष ले लेते हैं। प्रीति तनेजा ने कहा कि साहित्य इतना भ्रमित हो गया है कि वह कई कल्पनाओं को जन्म देता है। साहित्य में अतिरेक बढ़ गया हैं। ऐसे तथ्यों पर वास्तविकता सवाल खड़े करती है, जो कि कल्पनाओं से परे हैं। शेक्सपियर कहते हैं कि समझ और अभिव्यक्ति के बीच संवाद ही असली ड्रामा है। इसलिए शेक्सपियर को इंडो पर्सियन दृष्टिकोण से पढ़ा जाना बेहद जरूरी है।