झील की भराव क्षमता को हमेशा आठ से दस फीट तक रखने के हिसाब से ढाई लाख टन से अधिक नमक नहीं बनाया जाता। झील का जल स्तर बना रहता था तब पचास कोस तक का भूजल स्तर ऊपर रहता। फुलेरा में पांच फीट नीचे पानी झलकता रहा। कैलाश शर्मा सांभरवाला के मुताबिक नमक के कारोबार में देश के नामी औद्योगिक घरानों की सांभर में गद्दियां रही और राजस्थान का पहला केंद्रीय बैंक भी सांभर में खोला गया। अब तो सांभर की झील का वो पुराना वैभव ही नहीं रहा। तब पशुपालन बहुत था और देशी घी में मैदा के 1286 तारों की फीणी बनाने वाले हलवाई बहुत मशहूर रहे।
जयपुर महाराजा के बनाए सूर्य मंदिर से निकलने वाली शिवजी के नन्दकेश्वर मेले की बरात में हजारों लोग शामिल होते और खटीकों की हथाई तथा लम्बी गली में जोधपुर-जयपुर के बीच में मीठी नोक-झौंक होती। चौहानों की राजधानी रहे सांभर में पृथ्वीराज चौहान का किला अब खंडहर हो गया है। शाकंभरी माता मंदिर की पहाड़ी पर जाहंगीर की बनवाई छतरी आज भी मशहूर है। अकबर को धार्मिक शिक्षा देने वाले संत दादूदयाल की झील में बनी छतरी और उनके चमत्कारों की कथाएं आज भी लोगों की जुबान पर है।