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जयपुर

टीबी और सांस के रोगों को बिना दवा के मिटाती थी राजस्थान की ये झील, लगी रहती थी मरीजों की भीड़

सांभर में नमक की प्राकृतिक झील ( Sambhar Lake ) से निकली आबोहवा की बयार से कभी टीबी यानी क्षय और सांस के रोगी को बहुत राहत मिलती थी। 90 वर्ग मील में करीब आठ से दस फीट तक जल से लबालब झील की हवा में नमक का मिश्रण होने से श्वास और टीबी के मरीज महीनों तक सांभर में रहते थे…

जयपुरNov 30, 2019 / 01:02 pm

dinesh

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जयपुर। सांभर में नमक की प्राकृतिक झील ( Sambhar Lake ) से निकली आबोहवा की बयार से कभी टीबी यानी क्षय और सांस के रोगी को बहुत राहत मिलती थी। 90 वर्ग मील में करीब आठ से दस फीट तक जल से लबालब झील की हवा में नमक का मिश्रण होने से श्वास और टीबी के मरीज महीनों तक सांभर में रहते थे। झील के किनारे पर सेठ साहूकारों ने रोगियों के लिए बगीचियां बना रखी थी। उस जमाने में क्षय को असाध्य रोग माना जाता था और इसका कोई ठोस उपचार भी नहीं था। गुलाब सागर, सुख सागर और सीता सागर के पास रोगी झील की हवा का सुख भोगते थे।
अंग्रेज शासकों ने नमक कारोबार की इस मुख्य झील के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने वर्षों पहले झील को रेलवे लाइन से जोड़ा और नमक पिसाई के संयत्रों को चलाने के लिए जयपुर से पहले सांभर में बिजली पहुंचाई। मानसून आगमन के पहले जल आवक के नदी नालों से अतिक्रमण रोकने और देशी-विदेशी पक्षियों को शिकारियों से बचाने के लिहाज से 40 स्थानों पर चौकियां कायम कर देते।
राजस्थान का पहला केंद्रीय बैंक यही खोला गया
झील की भराव क्षमता को हमेशा आठ से दस फीट तक रखने के हिसाब से ढाई लाख टन से अधिक नमक नहीं बनाया जाता। झील का जल स्तर बना रहता था तब पचास कोस तक का भूजल स्तर ऊपर रहता। फुलेरा में पांच फीट नीचे पानी झलकता रहा। कैलाश शर्मा सांभरवाला के मुताबिक नमक के कारोबार में देश के नामी औद्योगिक घरानों की सांभर में गद्दियां रही और राजस्थान का पहला केंद्रीय बैंक भी सांभर में खोला गया। अब तो सांभर की झील का वो पुराना वैभव ही नहीं रहा। तब पशुपालन बहुत था और देशी घी में मैदा के 1286 तारों की फीणी बनाने वाले हलवाई बहुत मशहूर रहे।
मशहूर है जाहंगीर की बनवाई छतरी
जयपुर महाराजा के बनाए सूर्य मंदिर से निकलने वाली शिवजी के नन्दकेश्वर मेले की बरात में हजारों लोग शामिल होते और खटीकों की हथाई तथा लम्बी गली में जोधपुर-जयपुर के बीच में मीठी नोक-झौंक होती। चौहानों की राजधानी रहे सांभर में पृथ्वीराज चौहान का किला अब खंडहर हो गया है। शाकंभरी माता मंदिर की पहाड़ी पर जाहंगीर की बनवाई छतरी आज भी मशहूर है। अकबर को धार्मिक शिक्षा देने वाले संत दादूदयाल की झील में बनी छतरी और उनके चमत्कारों की कथाएं आज भी लोगों की जुबान पर है।

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