हालांकि, अपनी वैश्विक पहुंच के बावजूद सोशल मीडिया काफी हद तक उन इंटरनेट यूजर्स के दायरे से बाहर रहा है, जो एक या एक से ज्यादा देसी भाषाएं बोलते हैं। इसमें दुनिया की 80 फीसदी और भारत में 90 फीसदी आबादी शामिल है, जो देसी भाषा बोलती है। ऐसे लोग जो अंग्रेजी में पारंगत नहीं हैं, लेकिन तकनीकी-प्रेमी है और खरीदारी या लेन-देन के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते है, फिर भी इस वजह से ऐसे सोशल प्लेटफॉर्म से जुड़ने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि यहां बातचीत और अभिव्यक्ति काफी हद तक अंग्रेजी में होती है। अंग्रेजी दर्शकों के लिए पश्चिम में डिजाइन किए गए प्लेटफॉर्म पर देसी भाषा बोलने वाले यूजर्स अक्सर अलग-थलग महसूस करते हैं। कू एप सह-संस्थापक और सीईओ अप्रमेय राधाकृष्ण का कहना है कि जनता की भलाई के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल में हर इंटरनेट यूजर को सशक्त बनाना अनिवार्य है, फिर चाहे वे अंग्रेजी बोलते हों या कोई अन्य भाषा। यह विशेष रूप से भारत के लिए एक हकीकत है, जहां हर दस नए इंटरनेट यूजर्स में से नौ, एक देसी भाषा बोलते हैं। इसलिए, बहुभाषी चर्चा के लिए तैयार किए गए प्लेटफॉर्म समय की मांग हैं।
डिजिटल रूप से लगातार बदलती दुनिया में भाषा अब बाधा नहीं बन सकती और मनुष्य के रूप में जन्मजात हमें मिली अभिव्यक्ति, केवल अंग्रेजी बोलने वालों का विशेषाधिकार नहीं हो सकती। ढेरों तरह की भाषाओं वाली दुनिया को ऐसे सोशल प्लेटफॉर्म्स की जरूरत पड़ती है, जो प्रत्येक व्यक्ति को उसकी पसंद के किसी भी विषय पर सहूलियत की भाषा में खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यिक्त करने में सक्षम बनाता हो। वैश्विक सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स की अंग्रेजी-केंद्रित डिजाइन के चलते वे यूजर्स जो अभी तक असहाय महसूस कर रहे थे, उन्हें बहुभाषी या अन्य किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का पता लगने पर, समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के साथ सार्थक बातचीत करने के साथ-साथ अलग-अलग भाषा बोलने वाले यूजर्स के साथ जुड़कर सशक्त महसूस करना चाहिए। देसी भाषा में अभिव्यक्ति को सक्षम बनाना डिजिटल सशक्तिकरण का एक पहलू है, जबकि दो अलग-अलग भाषाओं के लोगों के बीच सहज बातचीत को सुगम बनाना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। सोशल मीडिया को एक ऐसे चैनल के रूप में विकसित होना चाहिए, जो विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को एक साथ जोड़े, भाषाई खाई को भरे और सभी प्रकार के डिजिटल संवाद को हक दिलाने के लिए संघर्षशील हो। यह विशेष रूप से भारत में महत्वपूर्ण है, जहां विभिन्न भौगोलिक और भाषाई पृष्ठभूमि वाले लोग पारस्परिक हित के विषयों पर संवाद के लिए एक-दूसरे से जुड़ना चाहते हैं। हो सकता है कि एक ठेठ पंजाबी या गुजराती बोलने वाला क्रिकेट या फिल्मों जैसे विषय पर चर्चा करने के लिए या एक त्योहार मनाने के लिए या बस ‘जानने’ और ‘जुड़ने’ के लिए एक तमिल या तेलुगू बोलने वाले यूजर के साथ जुड़ना चाहे। इस तरह, मूल भाषाओं के बीच रीयल-टाइम अनुवाद को सक्षम बनाने, क्रिएटर्स और यूजर्स को अपनी मातृभाषा में कंटेंट बनाने और इस्तेमाल करने की इजाजत देने वाले फीचर्स उत्साह को बढ़ा सकते हैं और डिजिटल सशक्तिकरण को एक नए स्तर पर ले जा सकते हैं। इस तरह के फीचर्स यूजर्स की संतुष्टि के साथ प्लेटफॉर्म पर दिए जाने वाले वक्त को भी बढ़ा सकते हैं।
भारत जैसे देश में जहां 22 आधिकारिक भाषाएं और 6000 से अधिक बोलियां बोली जाती हैं, वहं एक बेहतरीन भाषा-आधारित मंच जो एक व्यापक और बिल्कुल जमीनी अनुभव प्रदान करता है, काफी आगे जाएगा। यानी एक ऐसी डिजिटल दुनिया जहां हर इंटरनेट यूजर स्वतंत्र रूप से खोजने, अभिव्यक्त करने और संवाद करने के लिए सशक्त महसूस करेगा। इंसानी जुबान को डिकोड करने वाली नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) जैसी जबरदस्त तकनीक द्वारा संचालित ऐसे प्लेटफॉर्म जो बहुभाषी और बहु-सांस्कृतिक समाजों की बारीकियों और स्वभाव को समझते हैं, भारत में तरक्की हासिल करेंगे और ऐसे समाधान पेश करेंगे, जिन्हें गैर-अंग्रेजी बोलने वाली दुनिया में कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत से बहुभाषी सोशल मीडिया का ‘सभी को एक साथ जोड़ने वाला’ दृष्टिकोण डिजिटल सशक्तिकरण का समर्थन करेगा और तकनीक आधारित इस दशक (टेकेड) में अरबों की आवाज का लोकतंत्रीकरण करेगा।