32 साल पहले हुई इस सनसनीखेज वारदात का फैसला कोर्ट ने सुनाया है। इस केस में कुल 18 आरोपी थे। इसमें से 9 आरोपियों को पहले ही सजा सुनाई जा चुकी है। जबकि, एक आरोपी पहले से ही दूसरे मामले में जेल में बंद है और एक आरोपी सुसाइड कर चुका है। वहीं एक आरोपी अभी भी फरार है।
कोर्ट ने नफीस चिश्ती (54), नसीम उर्फ टार्जन (55), सलीम चिश्ती (55), इकबाल भाटी (52), सोहिल गनी (53), सैयद जमीर हुसैन (60) को उम्रकैद की सजा सुनाई है। बता दें कि अजमेर ब्लैकमेल कांड जिला अदालत से हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो कोर्ट के बीच घूमता रहा। शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाए, लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही देने से मुकर गई। 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 में उनमें से चार को बरी कर दिया।
साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा घटाकर 10 साल कर दिया। इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, इशरत, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था। 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया, जिसने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करवा लिया था।
2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारूक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है। साल 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर रिहा हो गया। अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल गई थी।
वहीं, एक आरोपी अलमास महाराज पकड़ा ही नहीं जा सका। आखिरी में पकड़े गए सोहेल गनी, नफीश चिश्ती, जमीर हुसैन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, नसीम उर्फ टार्जन को कोर्ट ने दोषी ठहराया है।