जगह-जगह होटल, रेस्त्रां और सफारी टूर पैकेज के कारोबार पनपे हैं, पैसा तो आ रहा है, लेकिन ये घातक भी है। बचपन से ही पैसा कमा रहे किशोर पढ़ नहीं रहे हैं। जेबें भरी है और हायर एजुकेशन के प्रति उदासीनता बढ़ी है। इसी बेपरवाह अंदाज में कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस जनप्रतिनिधि ने काम किया, किसने नहीं।
जैसलमेर से 130 किलोमीटर दूर तनोट माता मंदिर में नवरात्र पर विशेष चहल पहल दिखी। युद्ध वाली देवी के दर्शन करने आ रहे लोगों से चुनाव पर बात हुई। अजीत सिंह कछावा देशभर में बिछे सड़कों के जाल से खुश हैं। उन्हें लगता है काफी काम हुआ है। पोकरण के विजय सिंह राठौड़ का कहना है कि थार में जब तक पानी का माकूल इंतजाम नहीं होगा, थार की प्यास और आस अधूरी ही रहेगी। सरकारें आती हैं, चलीं जाती हैं, बड़े-बड़े वादे होते हैं, लेकिन पानी नहीं आता।
तनोट माता के मंदिर में पूजा से लेकर व्यवस्था का पूरा काम बीएसएफ देखती है। नवरात्र में बीएसएफ ने भंडारा भी चला रखा था, हर भक्त को यहां पूड़ी-छोले-हलवे की प्रसादी दी जा रही थी। भक्तों की कोई जात नहीं थी, हिन्दू-मुसलमान सब यहां दर्शन को आ रहे थे, पर ठीक दो महीने बाद, लोकतंत्र के मंदिर में जाने क्यों जात-पात हावी हो जायेगा! कुछ इसी तरह का सोचना था मंदिर में सेवा दे रहे बीएसएफ के जवानों का। उनके नाम का जिक्र सुरक्षा कारणों से नहीं कर रहा हूं।
तनोट मंदिर से जैसलमेर की ओर बढ़े ही थे कि घंटियाली ढाणी पड़ी। रेत के टीलों के बीच कोई गिनती के दस झोंपड़े। यहां से काम की तलाश में निकल रहे मोहसिन का चुनावों के प्रति कोई मोह नजर नहीं आया। हर बार जहां गांव का मुखिया कहता है, वोट डाल देते हैं। कुछ किलोमीटर आगे बढ़े तो इंदिरागाधी नहर नजर आई। अस्सी के दशक से ये जैसलमेर की प्यास बुझा रही है। पानी से लबालब। पहले नाम राजस्थान नहर था, बाद में इंदिरा गांधी नहर हो गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि नहर का पानी न आया होता तो अब तक जैसलमेर में लोग प्यासे मर गए होते। पर इस पानी से शहरी इलाकों में ही सप्लाई हो पा रही है, गांव अभी भी इंतजार में ही हैं। नहर पर हाथ-मुंह धो रहे कुछ किसान मिले। सदामा राम और रावल की खुद की जमीन है, पर बंजर। इसलिए गुजर-बसर के लिए दूर किसी दूसरे के खेत में काम करते हैं। सरकार से गुहार है कि धोरों में पानी ला दे, ताकि वो दर-दर न भटकें।
जैसलमेर आने पर हनुमान चौराहे पर चाय पीने का मन हुआ. चाय मांगी तो मिली नहीं। इतने में एक मुस्लिम महिला ने आकर ‘बम-बम महादेवÓ कहा और उसे चाय मिल गई। माजरा समझ नहीं आया, तो पता चला इस दुकान पर चाय तभी मिलती है जब ‘बम’ कहा जाए। नाम मीरां खां। दो चाय लेकर अपनी साथी के साथ जमीन पर बैठ चाय पीती हुई। मेरी हिन्दी में कही बात समझ नहीं आई तो वहां मौजूद स्थानीय व्यक्ति से सवाल पुछवाया, गांव में क्या कुछ किया सरकार ने? मीरां ज्यादा तो नहीं बोलीं, पर ये जरूर कहा- स्वास्थ्य केन्द्र में नर्स नहीं है। मीरां मोहनगढ़ की जलकंठी ढाणी में रहती है।
जैसलमेर का अपना संसदीय क्षेत्र तक नहीं है। कुल जमा दो विधानसभा सीट हैं। एक जैसलमेर दूसरी पोकरण। पोकरण-फलसुंड-बालोतरा-सिवाना पेयजल लिट परियोजना पिछले 10 सालों से पूरी नहीं हुई, जिसका लोगों को इंतजार है। जैसलमेर, पोकरण दोनों ही जगह चिकित्सा के हाल भी बेहाल हैं। हल्की सी भी बीमारी बढ़ी तो लोग गुजरात के डीसा या अहमदाबाद की ओर रुख करते हैं। उन्हें जोधपुर के अस्पतालों पर भरोसा नहीं, जिले के पास खुद कोई बड़ा अस्पताल है नहीं।