इसके लिए केन्द्र सरकार की आरडीएसएस (पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र सुधार योजना) में निर्धारित प्रावधान का हवाला दिया गया। इस प्रावधान की आड़ में गली निकाली गई और तर्क दिया कि बड़ी कंपनी आएगी तो बेहतर काम होगा। उधर, अब दूसरी कंपनियां कोर्ट का रास्ता अपना रही है। सूत्रों के मुताबिक इसमें एक आईएएस की भूमिका भी बताई जा रही है, जो पिछली सरकार में प्रमुख पद पर रहे। क्योंकि, उसी दौरान इसका खाका तैयार किया गया था।
इस विकल्प से दूर रहे
एक डिस्कॉम में औसतन 50 लाख उपभोक्ता हैं। यदि तीनों डिस्कॉम के लिए अलग-अलग निविदा होती तो 50 प्रतिशत के आधार पर हर डिस्कॉम में 25 लाख उपभोक्ता संख्या निकलती है। देश में ऐसी कई कंपनियां हैं जो भागीदारी के लिए योग्य हो जाती। यूं समझें स्थिति…..
इस प्रावधान का हवाला- अफसरों का कहना है कि केन्द्र सरकार की आरडीएसएस स्कीम के तहत सब्सिडी लेनी है तो उसके प्रावधान की पालना करनी होगी। इसमें प्रावधान है कि जो भी कंपनी काम करेगी, उसे डिस्कॉम में जितने उपभोक्ता हैं, उसके 50 प्रतिशत के अनुपात में कहीं और काम करने का अनुभव होना चाहिए।
यह किया
तीनों डिस्कॉम के लिए एक ही निविदा की। इसमें 1.50 करोड़ उपभोक्ता शामिल हुए और 50 प्रतिशत के प्रावधान के आधार पर न्यूनतम उपभोक्ता बिलिंग अनुभव का आधार 75 लाख उपभोक्ता के अनुसार हो गया। एक टेंडर में एक साथ इतने उपभोक्ताओं की बिल प्रिंटिंग का काम करने वाली गिनीचुनी बड़ी कंपनियां ही हैं। इससे छोटी कंपनियां स्वतः ही बाहर हो गई। मामला ऊर्जा मंत्री तक पहुंचा है। इस मामले को लेकर ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर का कहना है कि इस विवाद के पीछे कारण पता कर रहा हूं। गलत हुआ है तो उसमें सुधार भी करेंगे।