प्रदेश के कार्मिक विभाग से मिली जानकारी के अनुसार राजस्थान में आईएएस अफसरों की कैडर स्ट्रेंथ 315 की है। इनमें से 18 आईएएस अफसर सेंट्रल डेप्यूटेशन पर है। वहीं अब केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय राज्य से आईएएस अफसरों को सेंट्रल डेप्यूटेशन पर मांग रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसकी मंजूरी नहीं दे रहे है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मानना है कि राज्य में पहले से ही आईएएस अफसरों की कमी है। अगर सेंट्रल डेप्यूटेशन पर अफसरों को भेजते हैं तो राज्य में योजनाओं के क्रियान्वय पर पूरी तरह से ब्रेक लग जाएगा। इसी बात को लेकर अब पीएम नरेन्द्र मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच ठन गई है। गौरतलब है कि केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय के मुखिया पीएम नरेन्द्र मोदी हैं।
कतार में अफसर… मंज़ूरी का इंतज़ार
अभी राज्य से 12 अफसर सेंट्रल डेप्यूटेशन पर जाने के लिए कतार में लगे हुए हैं। लेकिन उनके सेंट्रल डेप्यूटेशन पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंजूरी नहीं दी है। उधर आईएएस अफसरों में चर्चा है कि एक तरफ तो मुख्यमंत्री राज्य में आईएएस अफसरों की कमी की बात कहकर सेंट्रल डेप्यूटेशन को अटका रहे हैं, वहीं महीने भर से बिना काम के दिल्ली से लौटे अफसरों को कार्मिक विभाग में बैठा रखा है।
क्या वाकई है अफसरों की कमीं?
राजस्थान में अगर आईएएस अफसरों की कमी है तो फिर आईएएस रजत कुमार मिश्र को सेंट्रल डेप्यूटेशन और राज्यपाल के सचिव देवाशीष पुष्ठि को सेंट्रल डेप्यूटेशन के जरिए ब्रुसेल्स जाने की अनुमति किस आधार पर दी गई।
अपने तय समय से सेंट्रल डेप्यूटेशन से लौटे आईएएस दिनेश कुमार, आईएएस रोहित गुप्ता बीते एक महीने से अपने पदस्थापन का इंतजार कर रहे है। वहीं आईएफएस टीजे कविता भी सेंट्रल डेप्यूटेशन से लौट चुकी हैं लेकिन उनका भी पदस्थापन नहीं किया गया है।
इसी तरह से आईएएस मुग्धा सिन्हा को अफसरों की कमी के बाद भी क्यों कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए लाइजन अधिकारी बना कर सेंट्रल डेप्यूटेशन पर भेजा गया है। दरअसल, हर पांच साल में कार्मिक विभाग केन्द्रीय कार्मिक विभाग के पास जाता है , लेकिन इस बार सीएम के अधिकारी भेजने से इनकार के बाद केन्द्रीय कार्मिक विभाग का रूख भी काबिले गौर होगा, माना जा रहा है इसका नुकसान प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों को उठाना पड़ सकता है।