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जयपुर

मेरा बेटा बड़ा होकर क्या बनेगा..एप्टीट्यूट टेस्ट से पता लगा रहे पेरेंट़्स

बच्चा डॉक्टर बनेगा या इंजीनियर। अ भिभावक बचपन से ही बच्चों के लिए सपने देख लेते हैं। इतना ही नहीं, उन सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई का दवाब बनाना शुरू कर देते हैं।

जयपुरMay 18, 2023 / 09:17 pm

Kamlesh Sharma

Parents are finding out through aptitude test

बच्चा डॉक्टर बनेगा या इंजीनियर। अ भिभावक बचपन से ही बच्चों के लिए सपने देख लेते हैं। इतना ही नहीं, उन सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई का दवाब बनाना शुरू कर देते हैं।

जयपुर। बच्चा डॉक्टर बनेगा या इंजीनियर। अभिभावक बचपन से ही बच्चों के लिए सपने देख लेते हैं। इतना ही नहीं, उन सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई का दवाब बनाना शुरू कर देते हैं। नजीता यह निकलता है कि बच्चा न अ भिभावकों के सपने को पूरा कर पाता न ही अपनी प्रतिभा को निखार पाता है।

ऐसे में बच्चे जिदंगी में पीछ़े रह जाते हैं। लेकिन समय के साथ अब चलन बदल रहा है।बच्चे में कौनसी प्रतिभा छुपी है। वह किस फिल्ड में अच्छा कर सकता है। अ भिभावक इसका पता लगा रहे हैँ। इसके लिए एप्टीट्यूट टेस्ट करवाया जा रहा है। आठवीं से 12 वीं तक के छात्रों के लिए होने वाले इस टेस्ट से बच्चों के कौशल या क्षमताओं के बारे में पता लगाया जा रहा है।

क्यों जरूरी है यह टेस्ट
एप्टीट्यूड टेस्ट आमतौर पर छात्रों के स्किल्‍स की पहचान करने के उद्देश्य से लिए जाते हैं। टेस्ट स्कोर छात्रों के स्किल के हिसाब से सही करियर विकल्पों को चुनने में मदद करता है। इसके अलावा, इसका परिणाम उनके करियर के लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है।

आठवीं की जगह छठवीं से शुरू हो टेस्ट
हमारे देश में हुनर और प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। बच्चों को विरासत में कोई न कोई कौशल मिला हुआ होता है। ऐसे हुनरमंद बच्चों की पहचान विलंब से हो पाती है। ऐसे में बच्चों का कौशल परीक्षण जरूरी होता है। लेकिन यह परीक्षण अक्सर 12 वीं के बाद ही किया जाता है। इसमें बदलाव होना चाहिए। यह परीक्षण कक्षा पांचवीं के बाद ही होना चाहिए। ताकि छठवीं कक्षा से बच्चों को उसी दिशा में ले जाया जाए।
डॉ. स्निग्धा शर्मा, प्रोफेसर जयपुर महाविद्यालय

चार से पांच घंटे का होता है टेस्ट
यह टेस्ट आठवीं कक्षा के बाद करवाया जाता है। इसकी अव धि चार से पांच घंटे की होती है। इसमें एक प्रश्नावली होती है जिसमें हर क्षेत्र से जुुड़े टॉपिक होते हैं। बच्चों को लगातार इस टेस्ट को नहीं करवाया जाता। बीच-बीच में गेप देना होता है। परिणाम आने के बाद बच्चे की एक प्रोफाइल तैयार की जाती है। मनोवैज्ञानिक परिणाम के आधार पर आकलन करते हैं कि बच्चे में कौनसी प्रतिभा छुपी है वह किस क्षेत्र में अच्छा कर सकता है। राजस्थान विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में इसकी ट्रेनिंग दी जाती है।
मुक्ता सिंघवी, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग

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