मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सरकार के गठन के बाद सबसे पहले इसी मांग को पूरा किया। स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) को पेपर आउट के सभी मामलों की पड़ताल सौंप दी। निष्पक्ष पड़ताल हुई तो पेपर लीक में निकला सरकारी सिस्टम। राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य से लेकर सिपाही और पटवारी तक पूरा संगठित सरकारी गिरोह।
परीक्षा भले किसी की हो… रीट, वरिष्ठ अध्यापक, जेईएन, पुलिस कांस्टेबल या कनिष्ठ अभियंता भर्ती। हर किसी का पेपर आउट करने और कराने में सरकारी कर्मचारियों ने अहम भूमिका निभाई। महज इन पांच भर्तियों में ही अब तक 47 सरकारी कर्मचारी पकड़े जा चुके हैं। नई सरकार और एसओजी की इस फुर्ती से बेरोजगारों के जख्मों पर कुछ तो मरहम लगा। मगर एक सवाल अब भी बरकरार है। क्या बिना सरकार की परस्ती के यह संभव था।
कोई भी सरकारी कर्मचारी व्यक्तिगत हैसियत में इतना दुस्साहस कैसे कर सकता है कि वह पेपर आउट करे और करोड़ों की सौदेबाजी भी कर ले। पेपर लीक प्रकरण छोटा-मोटा नहीं बल्कि महाघोटाला है। यह सरकारी सिस्टम में बहुत बड़ी सेंधमारी है। बिना राजनीतिक संरक्षण और गठजोड़ के इतना बड़ा कारनामा संभव नहीं। इस महाघोटाले में शामिल सभी बड़े नाम भी सामने आने चाहिए।
आम धारणा है कि बड़ी मछली हमेशा सजा पाने से बच जाती है। पेपर लीक के मामलों में ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार और एसओजी दोनों का दायित्व है। जरूरी है कि वह उस अंतिम छोर तक पहुंचें, जहां से इन सरकारी कर्मचारियों में पेपर आउट करने की हिम्मत आई। फिर चाहे वह कितना भी बड़ा राजनेता हो या कितना भी बड़ा अधिकारी। हर एक को दबोचना होगा। तभी नई सरकार बेरोजगारों और जनता के दिल में एक बार फिर निष्पक्ष भर्ती का भरोसा पैदा कर पाएगी।