पंथी नर्तक सलीम जांगडे़ ने बताया कि संत शिरोमणी बाबा घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को हुआ था। उन्होंने सतनामी पंथ की नीव रखी। फिर, लोग इससे जुड़ते गए। उनके बाद हर साल उनकी जयंती मनाई जाने लगी। यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष फसल कटने के बाद 18 दिसंबर को शुरू होकर 31 दिसंबर तक चलता है। इसमें विभिन्न धार्मिक गतिविधियां होती हैं। इसी के अंतर्गत श्रद्धा के साथ प्रतिदिन नृत्यों की प्रस्तुतियां दी जाती हैं। इनमें पंथी प्रमुख होता है।
इस नृत्य में मांडल, झांझ, झूमका इत्यादि वाद्ययंत्रों पर नर्तक ताल मिलाते हैं। यह संगीत तीव्रगति का होने के बावजूद कर्णप्रिय होता है और जब इस पर नर्तक थिरकते हैं तो उनकी गति अचंभित कर देती है। जाहिर है, इतनी फास्ट बीट पर काफी देर तक बिना थके, बिना चूके स्टेप्स करना वाकई किसी शक्ति के संचार पर विश्वास करने को मजबूर करता है।
पंथी नृत्य में नर्तक सतनामी कंठी, जनेऊ, धोती, घुंघरू, फुंदरा धारण कर जब मंच पर पहुंचते हैं तो खुद में अनूठी ऊर्जा का अनुभव करते हैं और बिना रुके नृत्य करतेे हैं। रिझाते हैं पिरामिड-
पंथी नृत्य के दौरान नर्तक कई तरह के पिरामिड बनाते हैं, जो नयनाभिराम तो होते ही हैं, रोमांचक भी होते हैं। कई बार तो दर्शकों के रोम खड़े हो जाते हैं, तो कई बार उन्हें दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर देते हैं।