इस पर्व को मधुश्रावणी कहा जाता है। मिथिला की महिलाएं इस व्रत के प्रति गहरी आस्था रखती हैं। यही कारण है कि मधुश्रावणी के दिन यहां की अधिकांश सुहागन स्त्रियां व्रत रखती हैं। मधुश्रावणी पर्व को लेकर नवविवाहिताओं में सबसे ज्यादा उत्साह देखने को मिलता है। जैसे खासकर पंजाब में करवा चौथ पर जो माहौल रहता है वैसे ही मिथिलांचल में मधुश्रावणी के दिन देखा जाता है। 14 दिनों तक चलनेवाले मधुश्रावणी पर्व के दौरान अलग-अलग कथाएं सुनाई जाती हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक दीक्षित बताते हैं कि श्रावण कृष्ण पंचमी के दिन से मधुश्रावणी के व्रत की शुरुआत हो जाती है और सावन शुक्ल तृतीया को इसका पारण होता है। इन 14 दिनों तक सुहागनें दिन में एक समय भोजन करती हैं। मायके में रहनेवाली सुहागनें रोज शाम को फूलों का डाला सजाती हैं। अगले दिन इन फूलों से नागवंश की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के कारण वैवाहिक जीवन में मधुरता बनी रहती है।