कोटा…। आज यह नाम कोचिंग सिटी से ज्यादा सुसाइड सिटी या सपनों की मौत के नाम से कुख्यात होने लगा है। कारण, यहां बच्चे डॉक्टर व इंजीनियर बनने के सपने लेकर आते हैं। माता-पिता भी अपने बच्चों के सपने पूरे करने के लिए अपनी जमा-पूंजी तक दांव पर लगा देते हैं। लेकिन प्रतियोगिता की मार व नम्बरों से पिछड़ने के कारण बच्चों के ऊपर इतना प्रेशर आ जाता है कि उन सपनों को पूरा करने के तनाव में वे अपने आप को असहाय मान लेते हैं। नतीजा, खुद को समाज में एक बेहतर न समझ पाने और अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने के बोझ के चलते वे सुसाइड की तरफ अपना मन बना लेते हैं।
यह कहानी आज की नहीं है, बल्कि कई वर्षों से चली आ रही है। अब कई अभिभावक तो अपने बच्चों को कोटा की कोचिंग नगरी में ही भेजने से हिचकने लगे हैं। इसका नतीजा भी अब सामने आने लगा है। कोटा की बदनाम कोचिंग नगरी में इस साल बच्चों की एकाएक संख्या में भारी गिरावट भी देखने को मिली है। कोचिंग हब के साथ-साथ कोटा कोचिंग उद्योग बन चुका है। इस कोचिंग उद्योग को दुबारा पटरी पर लाने के लिए प्रशासन के साथ-साथ कोचिंग सेंटर्स भी नए सिरे से कवायद में जुटे हैं। कोटा में बच्चे सुसाइड नहीं करें, इसको लेकर प्रशासन ने भी कई प्रयास किए हैं। लेकिन अब तक प्रयासों के परिणामों पर नजर डालें तो नतीजा सिफर ही रहा है।
इस साल की शुरूआत में ही अब तक कोटा के 4 बच्चों ने सफेद एप्रीन की चाह में सफेद कफन नसीब हुआ है। आंकड़ों में बात करें तो वर्ष 2023 में जहां 26 छात्रों ने और वर्ष 2024 में 17 छात्रों ने पढ़ाई के डिप्रेशन के कारण सुसाइड की है। यानी हर माह औसत दो बच्चों ने सुसाइड की तरफ कदम उठाया है। ये आंकड़े काफी डरावने हैं। प्रशासन व अभिभावकों के अनेक प्रयासों के बाद भी सुसाइड नहीं रुकना भी दर्शाता है कि कहीं न कहीं उनके प्रयासों में कोई कमी तो नहीं रही है। अब सरकार को चाहिए कि वे अपने पूर्व में किए गए प्रयासों पर पुनर्विचार करें और देखें कि आखिर कहां कमी रह गई है। वहीं अभिभावकों को अपने बच्चों के प्रति पढ़ाई का अनावश्यक बोझ नहीं देना चाहिए। उन्हें हर समय समझाना चाहिए कि वे तनाव मुक्त होकर पढ़ाई करें।
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