कसाब और याकूब मेनन को फांसी के फंदे तक पहुंचाने वालीं मुंबई कैडर की पूर्व आईपीएस मीरा चड्ढा बोरवांकर का कहना था कि जब तक पुलिस फोर्स में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं नहीं आएंगी, पुलिस की छवि सुधरने वाली नहीं। उन्होंने कहा कि वह 1981 में 70 ऑफिसर के बैच में अकेली महिला थीं और सारे पुरुष ऑफिसर उन्हें देखकर गो बैक-गो बैक कहते थे। मैडम कमिश्नर की लेखक मीरां ने बताया कि जब मुंबई में डीसीपी थीं तो कमाटीपुरा में कानून-व्यवस्था बिगड़ गई थी, जब उन्हें वहां भेजा गया तो कमिश्नर ने ताना मारते हुए कहा कि तुम्हें भेजा गया मेरी मदद को। वहीं एक बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री जिले में उनकी पोस्टिंग को लेकर टिप्पणी की थी कि मुंबई में मीरां की मदद के लिए हम हैं, लेकिन जिले में उसकी मदद कौन करेगा। मीरां का कहना था कि महिला ऑफिसर होने के नाते उन्हें अपने आपको साबित करने में काफी मेहनत करनी पड़ी।
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मीरां का कहना था कि जब वह यरवदा जेल में तैनात थीं तो संजय दत्त वहीं थे। हमने उन्हें एक आम कैदी की तरह रखा क्योंकि कानून की नजर में कोई सेलिब्रेटी नहीं है, वहीं उन पर बनी फिल्म मर्दानी के बारे में मिलने के लिए रानी मुखर्जी पहुंची तो उन्होंने तोहफे में महिला कैदियों के लिए ईसीजी मशीन मांगी।
सेशन में खाकी द ब्रोकन विंग्स के लेखक और पूर्व आईपीएस अमोद के कांत का कहना था कि जेसिका लाल हत्याकांड और संजीव नंदा के हिट एंड रन केस में पुलिस ने तुरंत तहकीकात करके आरोपियों को पकड़ा। हालांकि दोनों ही मामलों में आरोपी संजीव नंदा और मनु शर्मा सेशन कोर्ट से बरी हो गए लेकिन बाद में दोनों को सजा मिली, जो बतौर पुलिस ऑफिसर उन्हें काफी संतुष्टि देता है। इसी तरह से चार्ल्स शोभराज को पकड़ने में भी उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी, लेकिन मजा बहुत आया। उन्होंंने कहा कि हर किसी को याद रखना चाहिए कि आखिर में सच की जीत होती है।