मालूम हो बीते साल नवंबर में विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र ने गांधीनगर स्थित स्टेट रेफरल सेंटर लेबारेट्री का जायजा लिया और लैब अधिकारियों को पानी के सैंपलों पर बार कोडिंग व्यवस्था लागू करने के निर्देश दिए थे। लैब अधिकारियों ने जल्द ही सॉफ्टवेयर तैयार कर बार कोडिंग करने की बात कही लेकिन अब तक छह महीने से ज्यादा समय बीत चुका है और अब भी लैब में पानी सैंपलों की मैन्युअली मार्किंग ही हो रही है। जिसके चलते जांच के लिए लाए गए सैंपलों में आसानी से हेरफेर करने का अंदेशा बना हुआ है।
डीओआईडी को लिखा पत्र
सॉफ्टवेयर तैयार करने के लिए लैब प्रशासन ने राज्य सूचना एवं प्रोद्योगिकी विभाग से संपर्क साधा। सॉफ्टेवयर तैयार भी हुआ, लेकिन उसकी खामियां अब तक दुरुस्त नहीं हो पाई हैं, जिसके चलते लैब में जांचे जा रहे सैंपलों पर मैन्युअली कोड तो डाला जा रहा है, लेकिन जांच रिपोर्ट लैब से आसानी से लीक होने का अंदेशा है। वहीं जांच प्रक्रिया पर भी सवाल उठ सकते हैं। मालूम हो बीते रविवार को एनएबीएल टीम लैब का दौरा भी कर चुकी है और लैब को मिले एनएबीएल सर्टिफिकेट को अगले दो साल के लिए एक्सटेंशन देने की सिफारिश भी की है।