जयपुर। गुलाबी शहर (pink city) के घाट की गूणी (ghat ki gooni) स्थित एेतिहासिक विद्याधर का बाग (vidyadhar ka bag) राजपूती स्थापत्य (rajput idioms) के साथ गंगा-जमुनी संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं। इस बाग का निर्माण विद्याधर चक्रवर्ती (vidyadhar chakravarty) ने 18वीं शताब्दी में करवाया था। यह बाग चार भागों में बंटा हुआ है। बाग में नीला महल, पीला महल, राजनिवास व रूपनिवास बने हुए हैं। इसके अलावा कुंड बावडी व छतरियां लोगों को आकर्षित करते हैं। यहां दिन के साथ नाइट ट्यूरिज्म भी शुरू कर रखा हैं, लेकिन यहां गिने-चुने पर्यटक ही पहुंच रहे हैं। बाग सैलानियों को नहीं जोड़ पाया है।
घाट की गूणी में करीब एक किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस बाग का नामकरण भी विद्याधर चक्रवर्ती के नाम पर ही किया गया। मुगल शैली में बने इस चारबाग उद्यान में महल, कुंड आदि राजपूती स्थापत्य कला को समाहित किए हुए हैं। इस बाग के ऊंचाई पर एक सुंदर महल है, जो विद्याधर चक्रवर्ती का अस्थाई निवास था, इस महल को नीला महल के नाम से जाना जाता है। यह महल आज भी नीला ही है, इसमें आज भी विद्याधर चक्रवर्ती की तस्वीर बनी हुई है। चारों ओर से खुला यह महल राजपूती स्थापत्य कला को जिंदा रखे हुए हैं। इसके आगे सुंदर उद्यान और कुआं हैं। कुएं में आज भी पानी भरा हुआ है, बड़ी बात यह है कि जयपुर का ग्राउंड वाटर लेवल कई फीट नीचे चला गया हो, लेकिन इस कुंए में आज भी 8-10 फीट नीचे ही पानी है, जिससे बाग में सिंचाई होने के साथ-साथ पानी अन्य काम में लिया जाता है।
बाग में दूसरा पीला महल है, जो पीले रंग में बना हुआ है। आज भी महल का रंग पीला ही है। महल चारों ओर से खुला है, इसमें खिड़कियां, जाली-झरोखे बने हुए हैं। इसके नीचे सुंदर उद्यान है। इस महल के नीचे सडक़ सीमा पर छतरियां बनी हुई है, जो घाट की गूणी की सुंदरता में चार चंाद लगाए हुए हैं। इसके नीचे राजनिवास व रूपनिवास बने हुए हैं, जो चारों ओर से खुले है। बाग में एक बावड़ी भी हैं। जानकार बताते हैं कि नीले महल के आगे बाग था, जिसकी खुदाई की तो बावड़ी का पता चला। वहीं बारादरियां भी बनी हुई है।
सैलानियों की पहुंच से दूर
विद्याधर के बाग में कनेक्टीविटी नहीं होने से देश-विदेश से आने वाले सैलानी बहुत ही कम पहुंच पाते हैं। यहां गिने-चुने पर्यटक ही बाग को निहारने आते हैं। पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने यहां नाइट ट्यूरिज्म भी शुरू कर रखा हैं, लेकिन उसमें भी गिने-चुने लोग ही पहुंच पाते हैं। विभाग के जयपुर वृत अधीक्षक सोहनलाल चौधरी बताते हैं कि पहले यह बाग सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिन था, वर्ष 2012 में सरकार ने इसे पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग को सौंपा है, उसके बाद इसकी देखरेख व सार-संभाल की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग ही कर रहा है।