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जयपुर

साहब! खून के दाग तो धो डाले…हादसे के निशां भी मिटा दो, वो मंजर.. लगता है डर

Jaipur Gas Tanker Blast Update: बार-बार हादसे के निशान देखने से व्यक्ति पुरानी यादों में खो जाता है। उसके सामने हादसे की तस्वीर घूमने लगती है। इससे यह तनाव-उदासी से घिर जाता है। उसे अनिंद्रा, बेचैनी होने लगती है

जयपुरDec 28, 2024 / 11:55 am

Akshita Deora

Jaipur Bhankrota Tragedy: जयपुर के भांकरोटा अग्निकांड… खून के निशान तो घुल गए लेकिन आठ दिन बाद भी हादसे के निशान वहीं बिखरे पड़े हैं। ये लोगों को डरा रहे है। उस भयांकर मंजर की याद दिला राय है। डर के साथ कैतुहाल भी कायम है। आज भी डीपीएस कट के पास पहुंचकर चालक गड़ियां रोक इधर- उधर देखना शुरू कर देते हैं। कुछ मोबाइल में उस सड़क की यादें सपेटने लगते हैं।

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भांकरोटा में 20 दिसंबर को एलपीजी से भरे टैंकर और एक कंटेनर की टक्कर के बाद आग का गोला फूट पड़ा था। इसमें कई जान और लोग जिंदा जल गए थे। हादसे के शिकार 20 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है और आठ लोग SMS अस्पताल के बर्न वार्ड में भर्ती है। हैरानी की बात है कि आठ दिन बीत जाने के बाद भी घटनास्थल के हालत नहीं बदले। हादसे के बाद दमकलों ने पानी फेंक सड़क से खून के निशान तो मिटा दिए लेकिन जलने से कबाड़ हुए बस, टैंकर, ट्रेलर ,कारें सड़क किनारे ही खड़े हैं। इसका स्थानीय के साथ वहां से गुजरने वाले लोगों के दिल-ओ- दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है।
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कितना दर्द झेला होगा उस सुबह


भांकरोटा थाने से कुछ ही दूरी पर अग्निकांड की भेंट चढ़े वाहन खड़े है। उनकी हालत खुद उस भयावह मंजर की कहानी बयां कर रही है। सड़क पर हादसे के शिकार लोगों के अधजले कपड़े अब भी पड़े हैं। ऐसा ही नजारा वहां खड़े एक जले हुए ट्रक में दिखा। दिनभर वहां से गुजरने वाले इन कपड़ों को देख यहां ठहर जाते हैं। तब एक ही विचार मन में आता है कि कितना दर्द झेला होगा उस सुबह।

दावे बहुत…हालात वही


स्थानीय लोगों का कहना है कि अग्निकांड के बाद प्रशासन ने कई दावे किए थे लेकिन अब भी हालात वैसे ही हैं। जिस रोड कट के कारण आग का गोला फूटा उसे बंद कर चेना चाहिए। उस कट को आगे या पेट्रोल पंप के पास खोल दिया जाए। साथ ही जले हुए वाहन हटा दिए जाए तो तस्वीर काफी हद तक बदल सकती है।
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पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का खतरा


बार-बार हादसे के निशान देखने से व्यक्ति पुरानी यादों में खो जाता है। उसके सामने हादसे की तस्वीर घूमने लगती है। इससे यह तनाव-उदासी से घिर जाता है। उसे अनिंद्रा, बेचैनी होने लगती है। काम में मन नहीं लगना, डर समेत कई दिक्कतें हो जाती है। ये पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्टेस डिसऑर्डर के लक्षण हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति की कॉउंसलिंग करनी पड़ती है। राहत नहीं मिलने पर साइको थेरेपी और दवाइयां दी जाती है।
डॉ. ललित बत्रा, अधीक्षक, मनोचिकित्सा केंद्र

मैं सब कुछ भूलना चाहता हूँ


घटना स्थल के समीप चाय की दुकान लगाने वाले ने बताया कि पहले यहां गिने-चुने लोग ही रुकते थे, लेकिन अजमेर रोड अग्निकांड ने इसे चर्चित बना दिया है। अब लोग पूछते हैं कि उस दिन क्या हुआ था। मैंने लोगों को लपटों से घिरा देखा था। वही सब कुछ बताने का मन नहीं करता। मैं भूलना बाहता हूं लेकिन सब याद आता रहता है। स्कूल की बसें भी यहीं से निकलती हैं। बच्चों पर क्या गुजरती होगी सोचकर रूह कांप उठती है।

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