136 सालों से अल्बर्ट हॉल संग्रहालय 20 हजार 400 पुरा सामग्रियों कां संजोए हुए है। इनमें 10 से अधिक देशों की ऐतिहासिक कलाकृतियां भी है। इनके लिए अल्बर्ट हॉल में अलग से ही अंतराष्ट्रीय कला दीर्घा बना रखी है, जहां विभिन्न यूरोपियन और एशियाई देशों से संकलित 18वीं-19वीं शताब्दी की बनी हुई कलाकृतियां मौजूद है। दीर्घा के चार खण्ड हैं, जिनमें पहला खण्ड में यूरोप, दूसरा में एशिया तथा तीसरा व चौथा खण्ड में विभिन्न देशों से मिली ऐतिहासिक पुरासामग्री मौजूद है।
दीर्घा की शान है ‘सत्सुमा’ व बर्मा की घंटी
इस दीर्घा में एशियाई देशों की प्रमुख नेपाल की बुद्ध की बड़ी धातु प्रतिमा और जापान के किनकोसान द्वारा बनाया हुआ विशालयकाय जापानी ‘सत्सुमा’ फूलदान है। बर्मा की बनी एक घंटी है, जो दो काठ की स्त्रियों के कंधों पर टिकी हुई है। लिपटी हुयी पूँछ वाले ड्रैगन युग्म की आकृति के काष्ठ छड़ पर टंगे हुए है। इसके अलावा जापानी संग्रह में जापानी तलवारें, फूलदान, परम्परिक वस्त्र धारण किये हुये छोट-छोटे पुतले और धातु प्रतिमाएं है। इसके अलावा बर्मा व सिंहली कलाकृतियां भी देखने को मिल रही है।
फारसी, तुर्की व जापानी ओपयुक्त मृदपात्र भी मौजूद
दीर्घा में अंग्रेज कुंभकार डॉल्टन व मिंटन द्वारा निर्मित 18-19वीं शताब्दी के चित्रित व उभरी आकृतियों युक्त बर्तन, तुर्की के लाल मृदपात्र, फारसी, तुर्की व जापानी ओपयुक्त मृदपात्रों का संग्रह भी है।
322 ईसा पूर्व की मिश्र की ममी भी है संरक्षित
322 ईसा पूर्व की मिस्र के पैनोपोलिस प्रदेश के अखमीन की तूतू नामक महिला की मृतदेह (ममी) को यहां संरक्षित रखा गया है। 17वीं शताब्दी की चारबाग कालीन भी संग्रहालय की शान बनी हुई है। संग्रहालय में 2 हजार 639 पुरा वस्तुएं पर्यटकों को निहारने के लिए प्रदर्शित की हुई है।
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साल 2008 में बनी यह दीर्घा
अल्बर्ट हॉल के अधीक्षक राकेश छोलक ने बताया कि 19वीं शताब्दी के आखिरी दशकों की 10 से अधिक देशों की कलाकृतियों की महत्ता को देखते हुए साल 2008 में अलग से अंतरराष्ट्रीय कला दीर्घा बनाई गई। यहां बाहर से आने वाले पर्यटकों को अपने देश की कलाकृतियों की जानकारी मिलती है।