scriptखाटू से लेकर सेठ सांवलिया तक कैसे तैयार होता है प्रसिद्ध मंदिरों का प्रसाद, क्या चढ़ता और मिलावट के कितने मामले, जानें सब कुछ… | How is Prasad prepared, what is offered, what Prasad is offered in Khatu Shyam Ji, Sanwalia Seth Temple, Shrinath Temple, Salasar Balaji and Mehdipur Balaji. | Patrika News
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खाटू से लेकर सेठ सांवलिया तक कैसे तैयार होता है प्रसिद्ध मंदिरों का प्रसाद, क्या चढ़ता और मिलावट के कितने मामले, जानें सब कुछ…

Top 5 famour temples of Rajasthan: राजस्थान के मंदिरों में प्रसाद की व्यवस्था पारंपरिक और विशेष है।

जयपुरSep 23, 2024 / 08:22 am

JAYANT SHARMA

World Famous Temples of Rajasthan: राजस्थान में धार्मिक स्थलों की समृद्ध परंपरा के तहत प्रसाद की तैयारी मंदिरों में ही की जाती है। हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तिरुपति मंदिर के प्रसाद में पशु चर्बी की बात उठाई, जिसके बाद देशभर के मंदिरों में प्रसाद की गुणवत्ता की चर्चा शुरू हुई। राजस्थान के मंदिरों में प्रसाद की व्यवस्था पारंपरिक और विशेष है।
सीकर के खाटू श्याम और मेंहदीपुर बालाजी का ऐसे तैयार होता है भोग

सीकर के खाटूश्याम मंदिर की बात करें, तो यहां भक्तों को पारंपरिक चूरमा, पराठे आदि का भोग चढ़ाया जाता है। यह सभी प्रसाद मंदिर के भीतर ही तैयार किए जाते हैं। इसी प्रकार, दौसा जिले के मेहंदीपुर बालाजी में भक्तों को पूरी और लड्डू मिलते हैं, जो विशेष रूप से मंदिर के कर्मचारियों द्वारा बनाए जाते हैं। यहां की मान्यता है कि बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के बाद ही भक्त प्रसाद लेकर आते हैं।
सांवलिया के सेठ हों या सालासर वाले बालाजी…

चित्तौड़गढ़ जिले का सांवलिया सेठ मंदिर भी खास है, जहां हर महीने करोड़ों रुपए का चढ़ावा आता है। यहां लड्डू और मिठाइयां चढ़ाने की अनुमति है, जो भक्त बाहर से खरीदकर लाते हैं। चुरू जिले के सालासर मंदिर में भी यही प्रक्रिया है। वहां भी लड्डू और अन्य प्रसाद बाहर से लाया जाता है जो भक्त खुद लाते हैं। मंदिर में प्रभु का भोग बनता है जो समय-समय पर उन्हें लगाया जाता है।
श्रीनाथ जी का भोग ऐसा जो मंदिर में ही होता तैयार….

राजसमंद जिले के श्रीनाथजी मंदिर में मीठी पापड़ी, खीर आदि का भोग चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद मंदिर में तैयार होता है और इसे भक्तों में वितरित किया जाता है। इस प्रकार, राजस्थान के मंदिरों में प्रसाद की व्यवस्था न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक समृद्धि का भी परिचायक है। प्रदेश के किसी भी मंदिर से मिलावट का कोई भी मामला सामने नहीं आया है। प्रदेश के अन्य बड़े मंदिरों में भी इसी तरह से प्रसाद चढ़ाया जाता है और भोग बनता है।

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