हाईकोर्ट ने अनियमित तरीके से एमबीबीएस में प्रवेश से संबंधित 9 याचिकाओं पर यह आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिए बिना उनका प्रवेश निरस्त कर दिया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय की ओर से कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार परीक्षाओं में सामूहिक नकल और चीटिंग के मामलों में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की पालना बाध्यकारी नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अनियमित तरीके से एमबीबीएस में प्रवेश लिया, जिसकी जांच पी के सिंह कमेटी द्वारा की गई। याचिकाकर्ताओं की सहमति से ही प्रकरण को जांच के लिए सीबीआई को भेजा गया। सीबीआई जांच के दौरान एफएसएल रिपोर्ट में भी याचिकाकर्ताओं को अनियमितता का दोषी पाया गया। इसके बाद
राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय ने याचिकाकर्ताओं को यूनिवर्सिटी ऑर्डिनेंस के अंतर्गत सुनवाई का अवसर दिया और एडमिशन निरस्त किया। इसको याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने कहा कि अनियमित तरीके से प्राप्त किया गया कोई लाभ दस साल बाद भी निरस्त किया जा सकता है।
चर्चित हुआ था मामला
वर्ष 2009 में आरपीएमटी आयोजित की गई, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने प्रवेश लिया। यह मामला मुन्नाभाई एमबीबीएस के नाम से चर्चित हुआ। मामला सामने आने पर हाईकोर्ट ने तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक पी के सिंह के नेतृत्व में जांच कमेटी बनाई। हाईकोर्ट ने मार्च 2011 में दोषियों के खिलाफ आदेश दिया और विश्वविद्यालय ने 2017 में इन याचिकाकर्ताओं की एमबीबीएस की डिग्री निरस्त कर एमसीआइ को सूचित कर दिया।