सांगानेर का नाम पुराना नाम संग्रामपुरा था। जयपुर बसने के दो सौ साल पहले आमेर नरेश पृथ्वीराज ने अपने 19 पुत्रों में से एक सांगा को संग्रामपुरा का सामंत बनाया था। अविवाहित रहे सांगा बाबा ने सांगानेर बसाने के पहले बकरे की बलि दी थी। इसके बाद महल, बाग के साथ सुरक्षा के लिए नगर के चारों तरफ परकोटा बनवाया।
सांगानेर में बने चार दरवाजे आज भी आमेर, मालपुरा, चाकसू व दौसा दरवाजों के नाम से जाने जाते हैं। आमेर नरेश पृथ्वीराज की एक पत्नी बीकानेर राजघराने के लूणकरण की बेटी बालाबाई से जन्मे सांगा का जन्म हुआ। जन्म के समय इनके मुंह में पूरी बत्तीसी थी। सांगा आमेर का भी रक्षक रहा।
शराब के आदि बने आमेर नरेश रतन ङ्क्षसह की कमजोरी का लाभ उठाकर जब मोजमाबाद के सामंत करमचंद व जयमल नरुका ने आमेर रियासत के ४० गांवों को जबरन दबा लिया तो सांगा ने ननिहाल बीकानेर के राव जैतसिंह की सेना को सांगानेर में बुलाकर मोजमाबाद पर हमला किया। इस युद्ध में जयमल व करमचंद नरुका मार गिराए गए।
मोजमाबाद के नरुका सामंतों की सांगा के हाथों हुई हत्या से नाराज मोजमाबाद के स्वामी भक्त चारण काना आढ़ा ने सांगा से बदला लेने की ठान ली। गुप्त तरीके से सांगोनर के महलों में प्रवेश कर काना आढा ने सांगा को कटार से मार दिया।
नाथावतों के इतिहास में लिखा है कि काना आढ़ा ने सांगा को मारने के बाद खुद भी छुरी से अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। सांगा बहुत बलशाली राजा था। सांगा ने एक बार आमेर के रायमल को एेसा दबाया, जिससे उसके शरीर की हड्डियां टूट गई। नि:संतान मरे सांगा के बाद में उनका छोटा भाई भारमल पृथ्वीराजोत सांगानेर का राजा बना। – जितेन्द्र सिंह शेखावत।
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